SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates स त्वमेवासि निर्दोषो, युक्तिशास्त्राऽविरोधिवाक् । अविरोधो यदिष्टं ते, प्रसिद्धेन न बाध्यते ।।६।। हे भगवन् ! वह वीतरागी और सर्वज्ञ आप ही हो, क्योंकि आपकी वाणी युक्ति और शास्त्रों से अविरोधी हैं। जो कुछ भी आपने कहा हैं वह सब प्रत्यक्षादि प्रसिद्ध प्रमाणों से बाधित नहीं होता हैं, अतः आपकी वाणी अविरोधी कही गई हैं।। ६।। त्वन्मतामृतबाह्यानां सर्वथैकान्तवादिनाम । आप्ताभिमानदग्धानां स्वेष्टं दृष्टेन बाध्यते ।।७।। हे भगवन् ! आपके द्वारा प्रतिपादिन अनेकान्तमत रूपी अमृत से पृथक् जो सर्वथा एकान्तवादी लोग हैं, वे आप्ताभिमान से दग्ध हैं अर्थात् वे प्राप्त न होने पर भी ' मैं प्राप्त हूँ' ऐसे मान बैठे हैं। वस्तुतः वे प्राप्त नहीं हो सकते, क्योंकि उनके द्वारा प्रतिपादित वस्तुस्वरूप प्रत्यक्षादि प्रमाणों से बाधित हैं।। ७।। कुशलाकुशलं कर्म परलोकश्च न क्वचित् । एकान्तग्रहरक्रेषु, नाथ! स्वपरवैरिषु ।।८।। हे नाथ! जो लोग एकान्त के आग्रह में रक्त हैं अथवा एकांत रूपी पिशाच से प्राधीन हैं, वे स्व और पर दोंनो के ही शत्रु (बुरा करने वाले ) हैं, क्योंकि उनके मत में शुभाशुभकर्म एवं परलोक आदि कुछ व्यवस्थित सिद्ध नहीं होते हैं।। ८ ।। भावैकान्तेपदार्थाना मभावानामपहवात् । सर्वात्मकमनाद्यन्त मस्वरुपमतावकम् ।।९।। ७१ Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008320
Book TitleTattvagyan Pathmala 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages76
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Education, Spiritual, & Philosophy
File Size394 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy