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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates के परिणाम अधस्तन समयवर्ती जीव के परिणामों से सदा विसदृश ही (अपूर्व ही, विशेष विशुद्धि वाले ही) होते हैं, और अभिन्न समयवर्ती जीवों के परिणाम परस्पर सदृश भी होते हैं तथा विसदृश भी होते हैं। इस गुणस्थान में स्थित जीवों की इस प्रकार की परिणाम–धारा होने से इस गुणस्थान का नाम अपूर्वकरण हैं। जो उपशम श्रेणी पर आरोहण करते हैं उनके भी ये परिणाम होते हैं, तथा जो क्षपक श्रेणी पर आरोहण करते हैं उनके भी ये परिणाम होते हैं। (९) अनिवृत्तिकरण इस गुणस्थान में स्थित जीवों के परिणामों की संज्ञा अनिवृत्तिकरण हैं। अनिवृत्ति अर्थात् अभेद ( सदृश) और करण अर्थात् परिणाम। यहाँ भी प्रत्येक जीव के एक समय में एक ही परिणाम ही होता हैं जो प्रत्येक समय अनंतगुणी विशुद्धि को लिए हुए होता हैं। जो प्रत्येक समय में भिन्न-भिन्न जीवों की अपेक्षा, उपरितन समयवर्ती जीव का परिणाम अधस्तनवर्ती जीव के परिणाम से विसदृश ही (अनंतगुणी विशुद्धि वाला ही) होता हैं और अभिन्न समयवर्ती जीवों के परिणाम सदा सदृश ही होते हैं। इस गुणस्थान में स्थित जीवों की ऐसी परिणाम–धारा होने से इस गुणस्थान का नाम अनिवृत्तिकरण हैं। इसका काल भी अंतर्मुहूर्त हैं। इस गुणस्थान में स्थित जीव ध्यानरूपी अग्नि के द्वारा मोहनीय की २० प्रकृतियों की उपशमना करते हैं या मोहनीय की २० प्रकृतियों की तथा नाम कर्म की १३ प्रकृतियों की क्षपणा करते हैं। इनके बध्यमान आयु का अभाव होता हैं। (१०) सूक्ष्म साम्पराय जिन जीवों के सूक्ष्म भाव को प्राप्त साम्पराय अर्थात् अबुद्धिपूर्वक होनेवाले सूक्ष्म लोभ कषाय के साथ अपने अन्तर्मुहूर्त काल तक प्रत्येक समय में अनन्तगुणी विशुद्धि को लिए हुए एक समय में एक ही (नियत विशुद्धि वाला ही) परिणाम होता हैं और जिनके निरन्तर कर्म प्रकृतियों के उपशमन और क्षपण होता रहता हैं, उनके उस गुणस्थान की सूक्ष्म साम्पराय संज्ञा हैं। १. उदाहरण रूप से किन्ही दो जीवों को अपूर्वकरण प्रारम्भ किए हुए ५ - ५ समय हुए हों तो उन दोनों जीवों को अभिन्न समयवर्ती अर्थात् एक समयवर्ती कहा जाता हैं । ५३ Please inform us of any errors on [email protected]
SR No.008320
Book TitleTattvagyan Pathmala 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages76
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Education, Spiritual, & Philosophy
File Size394 KB
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