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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates अनुभव रूप ध्यान ही वर्तता हैं। सातवें सहित आगे के सब गुणस्थानों के निर्विकल्प स्थिति ही होती हैं। इस गुणस्थान के दो भेद हैं :(१) स्वस्थान अप्रमत्तसंयत (२) सातिशय अप्रमत्तसंयत जो संयत क्षपकश्रेणी और उपशमश्रेणी पर प्रारोहण न कर निरन्तर एकएक अंतर्मुहूर्त में अप्रमत्तभाव से प्रमत्तभाव को और प्रमत्तभाव से अप्रमत्तभाव को प्राप्त होते रहते हैं, उनके उस गुण की स्वस्थान अप्रमत्तसंयत संज्ञा हैं। उपरोक्त मुनिराज, उग्र पुरुषार्थपूर्वक आत्मरमणता विशेष बढ़ जाने पर श्रेणी आरोहण के सन्मुख होकर अधःप्रवृत्तकरणरूप विशुद्धि को प्राप्त होते हैं, उनके उस गुण की सातिशय अप्रमत्तसंयत संज्ञा हैं। वे जब क्षपकश्रेणी आरोहण के योग्य उग्र पुरुषार्थ द्वारा आत्मलीनता करते हैं तो अंतर्मुहूर्त में ८, ९, १० और १२वें गुणस्थान को प्राप्त कर लेते हैं, और उनके चारित्रमोहनीय की २१ प्रकृतियों का क्षय हो जाता हैं तथा अंतर्मुहूर्त में वे केवलज्ञान को (१३ वें गुणस्थान को) अवश्य प्राप्त करते हैं। यदि वे उपशम श्रेणी के योग्य मंद पुरुषार्थ द्वारा आत्मलीनता करते हैं तो अंतर्मुहूर्त में ८, ९, १० और ११ वें गुणस्थान को प्राप्त करते हैं और उनके उपरोक्त २१ प्रकृतियों का क्षय न होकर मात्र उपशम होता हैं। ___ अधःप्रवृत्तकरण का काल अंतर्मुहूर्त हैं। यहाँ 'करण' का अर्थ परिणाम हैं। प्रधःप्रवृत्तकरण स्थित जीव को प्रत्येक समय में अनन्तगुणी विशुद्धता होती रहती हैं और भिन्न-भिन्न जीवों की अपेक्षा उपरितन समयवर्ती (आगे-आगे के समयवर्ती) तथा अधस्तन समयवर्ती (पीछे-पीछे के समयवर्ती) जीवो के परिणाम विसदृश भी होते हैं तथा सदृश भी होते हैं। ऐसे अधःप्रवृत्तकरण युक्त जीवों को सातिशय अप्रमत्तसंयत कहते हैं। (८) अपूर्वकरण इस गुणस्थान में स्थित जीवो के परिणामों की संज्ञा अपूर्वकरण हैं। इसका काल अन्तर्मुहूर्त हैं। यहाँ भी प्रत्येक जीव के परिणाम में प्रत्येक समय अनंतगुणी विशुद्धि होती जाती हैं । भिन्न-भिन्न जीवों की अपेक्षा उपरितन समयवर्ती जीव ५२ Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008320
Book TitleTattvagyan Pathmala 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages76
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Education, Spiritual, & Philosophy
File Size394 KB
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