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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates से ध्रुव रहने से जीव स्वयं ही अपादान हैं; ( ६ ) अपने में अर्थात् अपने आधार से जीवभाव करता होने से जीव स्वयं ही अधिकरण हैं । कर्म वास्तव में स्वयं ही षट्कारक रूप परिणमित होता हैं इसलिये अन्य कारको (अन्य के षट्कारकों) की अपेक्षा नहीं रखता। इसी प्रकार जीव षट्कारक रूप परिणमित होता हैं इसलिए अन्य के षट्कारकों की अपेक्षा नहीं रखता; इसलिए निश्चय से कर्म का कर्ता जीव नहीं हैं और जीव का कर्ता कर्म नहीं हैं। निश्चय से पुद्द्गल द्रव्य ज्ञानावरणादि कर्मयोग्य पुद्गल स्कंधोरूप परिणमित होता हैं और जीव द्रव्य भी अपने औदयिकादि भावोरूप स्वयं परिणमित होता हैं। दोनों के कारण एक-दूसरे से बिलकुल भिन्न और निरपेक्ष हैं अत: इसी द्रव्य के कारकों को कीसी अन्य द्रव्य के कारकों की अपेक्षा नहीं होती । जिज्ञासु - इसके जानने से क्या लाभ हैं ? प्रवचनकार स्पष्ट हैं कि जहाँ तक श्रद्धा में इस मान्यता का सद्भाव हैं कि ‘अन्य द्रव्य तद्रिन्न अन्य द्रव्य की उत्पाद - व्यय रूप क्रियापरिणति का कर्ता आदि होता हैं ' वहीं तक मिथ्यात्व दशा हैं। तथा जहाँ से श्रद्धा में उसका स्थान वस्तुभूत यह विचार ले लेता हैं कि ' प्रत्येक द्रव्य अपनी क्रियापरिणति का कर्ता आदि आप स्वयं हैं, यह आत्मा अपने अज्ञानवश संसार का पात्र आप स्वयं बना हुआ हैं और अपनें पुरुषार्थ द्वारा उसका अंत कर आप स्वयं मोक्ष का पात्र बनेगा' वहीं से आत्मा की सम्यक्दर्शनरूप अवस्था का प्रारंभ होता हैं और इस आधार से जैसे-जैसे चारित्र में परनिरपेक्षता प्राकर स्वावलंबन में वृद्धि होती जाती हैं वैसे-वैसे सम्यग्दृष्टि का उक्त विचार आत्मचर्या का रूप लेता हुआ परम समाधि दशा में परिणत हो जाता हैं । अतएव अन्य द्रव्य तद्भिन्न अन्य द्रव्य की क्रियापरिणति का कर्ता हैं, कर्म हैं, करण हैं, संप्रदान हैं, अपादान हैं, अधिकरण हैं यह व्यवहार से ही कहा जाता हैं; निश्चय से तो प्रत्येक द्रव्य अपनी क्रियापरिणति का स्वयं कर्ता हैं, स्वयं कर्म हैं, स्वयं करण हैं, स्वयं संप्रदान हैं, स्वयं अपादान हैं और स्वयं अधिकरण हैं; यही सिद्ध होता हैं । - ४२ Please inform us of any errors on [email protected]
SR No.008320
Book TitleTattvagyan Pathmala 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages76
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Education, Spiritual, & Philosophy
File Size394 KB
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