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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates यह ज्ञानमय दशा प्रानन्दमय भी है, यह ज्ञानानन्दमय हैं । इसमें ज्ञान और आनंद का भेद नही हैं। यह ज्ञान भी इन्द्रियातीत हैं और आनंद भी इन्द्रियातीत। यह अतीन्द्रिय ज्ञानानन्द की दशा ही धर्म हैं। अतीन्द्रिय ज्ञानानन्द स्वभावी ध्रुवतत्त्व पर संपूर्ण प्रगट ज्ञान-शक्ति का केन्द्रीभूत हो जाना धर्म की दशा हैं। अतः एक मात्र वही ज्ञानानंद स्वभावी ध्रुवतत्त्व ध्येय हैं, साध्य हैं और आराध्य हैं; तथा मुक्ति के पथिक तत्त्वाभिलाषी को समस्त जगत अध्येय, असाध्य और अनाराध्य हैं। यह चैतन्यभावरूप प्रात्मानुभूति ही करने योग्य कार्य (कर्म) हैं ; पर की कोई भी प्रकार की अपेक्षा बिना चेतन प्रात्मा ही इसका कर्ता हैं और यही धर्मपरिणतिरूप ज्ञानचेतना सम्यक् क्रिया हैं। इसमें कर्ता, कर्म और क्रिया का भेद कथनमात्र हैं, वैसे तो तीनों ही ज्ञानमय होने से अभिन्न ( अभेद) ही हैं। धर्म का प्रारम्भ भी आत्मानुभूति से ही होता हैं और पूर्णता भी इसी की पूर्णता में। इससे परे धर्म की कल्पना भी नहीं की जा सकती। आत्मानुभूति ही आत्मधर्म हैं। साधक के लिए एक मात्र यही इष्ट हैं। इसे प्राप्त करना ही साधक का मूल प्रयोजन हैं। उक्त प्रयोजन की सिद्धि हेतु जिन वास्तविकताओं की जानकारी आवश्यक हैं उन्हें प्रयोजनभूत तत्त्व कहते हैं तथा उनके सम्बन्ध में किया गया विकल्पात्मक प्रयत्न ही तत्त्वविचार कहलाता हैं। _ ' मैं कौन हूँ?' (जीव तत्त्व), 'पूर्ण सुख क्या हैं ?' ( मोक्षतत्त्व), इस वैचारिक प्रक्रिया के मूलभूत प्रश्न हैं। मैं सुख कैसे प्राप्त करू अर्थात् आत्मा प्रतीन्द्रिय-पानंद की दशा को कैसे प्राप्त हो? जीव तत्त्व मोक्ष तत्त्वरूप किस प्रकार परिणमित हो ? आत्माभिलाषी मुमुक्षु के मानस में निरंतर यही मंथन चलता रहता हैं। वह विचारता हैं कि चेतन तत्त्व से भिन्न जड़ तत्त्व की सत्ता भी लोक में हैं। प्रात्मा में अपनी भूल से मोह-राग-द्वेष की उत्पत्ति होती हैं तथा शुभाशुभ भावों की परिणति में ही यह आत्मा उलझा ( बंधा) हुआ हैं। जब तक आत्मा अपने स्वभाव को पहिचान कर आत्मनिष्ठ नहीं हो जाता तब तक मुख्यतः ३३ Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008320
Book TitleTattvagyan Pathmala 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages76
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Education, Spiritual, & Philosophy
File Size394 KB
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