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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates जिस पदार्थ में कार्य निष्पक्ष होता है उसे उपादान और उस कार्य को उपादेय कहते हैं और निमित्त की अपेक्षा कथन करने पर उसी कार्य को नैमित्तिक कहते हैं। एक ही कार्य को उपादानकारण की अपेक्षा कथन करने पर उपादेय और निमित्तकारण की अपेक्षा कथन करने पर नैमित्तिक कहा जाता हैं। जिज्ञासु - उपादान-उपादेय और निमित्त-नैमित्तिक को कृपया उदाहरण देकर समझा दीजिए। प्रवचनकार - सुनो! जैसे ‘घट' कार्य का उपादानकारण मिट्टी रूप द्रव्य हैं। यहाँ 'मिट्टी' उपादान हैं, अतः इनकी अपेक्षा कथन करने पर 'घट' कार्य 'उपादेय' कहा जायगा तथा ‘घट' कार्य के कुम्हार, चक्रादि निमित्तकारण हैं। निमित्तों की अपेक्षा कथन करने पर उसी 'घट' कार्य को 'नैमित्तिक' कहा जायगा। यहाँ उपादेय शब्द का प्रयोग ‘ग्रहण करने योग्य' इस अर्थ में नहीं हैं। यहाँ तो निमित्त की अपेक्षा जिस कार्य को नैमित्तिक कहा जाता हैं, उसे ही अपने उपादान की अपेक्षा उपादेय कहा जाता हैं। आशा हैं अब आप लोगों की समझ में आ गया होगा। जिज्ञासु आ गया ! अच्छी तरह आ गया !! प्रवचनकार - तो ‘स्वर्णहार' और 'सम्यग्दर्शन' रूप कार्य पर उपादान-उपादेय और निमित्त-नैमित्तिक घटाइये । जिज्ञासु स्वर्ण रूप द्रव्य उपादान हैं और 'हार' ( स्वर्णहार) उपादेय हैं । आग, सुनार आदि निमित्त हैं और 'हार' नैमित्तिक हैं । इसी प्रकार प्रात्म द्रव्य या श्रद्धा गुण उपादान हैं और सम्यग्दर्शन उपादेय हैं , मिथ्यात्व कर्म का प्रभाव निमित्त हैं और सम्यग्दर्शन नैमित्तिक हैं । प्रवचनकार - बहुत अच्छा ! २६ Please inform us of any errors on [email protected]
SR No.008320
Book TitleTattvagyan Pathmala 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages76
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Education, Spiritual, & Philosophy
File Size394 KB
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