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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates पाठ ४ उपादान-निमित्त प्रवचनकार मंगलं भगवान् वीरो, मंगलं गौतमो गणी। मंगलं कुन्दकुन्दार्यो, जैन धर्मोऽस्तु मंगलम्।। जगत का प्रत्येक पदार्थ स्वयं परिणमनशील हैं । पदार्थो के परिणमन को पर्याय या कार्य कहते हैं। कार्य को कर्म, अवस्था, हालत, दशा, परिणाम और परिणति भी कहते हैं। प्रत्येक पदार्थ अपने परिणमन का कर्ता स्वयं हैं। उसे अपने परिणमन में दूसरे के सहयोग की रंचमात्र भी आवश्यकता नहीं हैं। अज्ञानी जीव पर के सहयोग की आकांक्षा से व्यर्थ ही दुःखी होता हैं । जिज्ञासु - ___ कारण के बिना कार्य की उत्पत्ति संभव नहीं हैं। अतः कारणों की खोज को व्यर्थ कैसे माना जा सकता हैं ? प्रवचनकार - तुम ठीक कहते हो कि कारण के बिना कार्य की उत्पत्ति संभव नहीं हैं। किन्तु जानते हो कारण किसे कहते हैं ? कार्य की उत्पादक सामग्री को ही कारण कहते हैं। वे कारण दो प्रकार के होते हैं - उपादानकारण और निमित्तकारण। जो स्वयं कार्यरूप परिणमित हो, उसे उपादानकारण कहते हैं। जो स्वयं कार्यरूप परिणमित न हो, परंतु कार्य की उत्पत्ति में अनुकूल होने का आरोप जिस पर आ सके, उसे निमित्तकारण कहते हैं; जैसे –' घट' रूप कार्य का मिट्टी उपादानकारण हैं और चक्र, दंड और कुंम्हार निमित्तकारण हैं। २५ Please inform us of any errors on [email protected]
SR No.008320
Book TitleTattvagyan Pathmala 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages76
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Education, Spiritual, & Philosophy
File Size394 KB
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