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जिज्ञासु
पूज्यवर गुरुदेव ! आपने दूध-दही का उदाहरण देकर तो समझा दिया। कृपया आत्मा पर घटाकर और समझा दीजिए ?
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आचार्य समन्तभद्र अंतरात्मारूप पर्याय का बहिरात्मारूप पूर्व पर्याय में अभाव प्रागभाव एवं परमात्मारूप आगमी पर्याय में प्रभाव प्रध्वंसाभाव कहा जावेगा।
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जिज्ञासु - और अन्योन्याभाव ?
आचार्य समन्तभद्र एक पुद्गल द्रव्य की वर्त्तमान पर्याय मे दूसरे पुद्गल द्रव्य की वर्त्तमान पर्याय का प्रभाव अन्योन्याभाव है । जैसे नीबू की वर्त्तमान खटास, चीनी की वर्त्तमान मिठास में नहीं है।
जिज्ञासु - इसे भी आत्मा पर घटाकर बताइये न ?
आचार्य समन्तभद्र यह आत्मा पर नहीं घटेगा। तुमने परिभाषा ध्यान से नहीं पढ़ी इसलिए ऐसा प्रश्न करते हो । परिभाषा में स्पष्ट कहा है कि एक पुद्गल द्रव्य की वर्त्तमान पर्याय में दूसरे पुद्गल द्रव्य की वर्त्तमान पर्याय का अभाव अन्योन्याभाव है, अतः यह मात्र पुद्गल द्रव्य में ही घटता है तथा पुद्गल द्रव्यों की भी मात्र वर्त्तमान पर्याय में ही ।
जिज्ञासु - प्रत्यन्ताभाव किसे कहते ?
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आचार्य समन्तभद्र एक द्रव्य का दूसरे द्रव्य में प्रभाव उसे अत्यन्ताभाव कहते हैं। जैसे जीव द्रव्य और पुद्गल द्रव्य में परस्पर प्रत्यन्ताभाव है ।
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ध्यान रहे प्रत्यन्ताभाव छहों द्रव्यों मे से किन्हीं दो द्रव्यों में घटता है अन्योन्याभाव दो पुद्गलों की वर्त्तमान पर्यायों में घटित होता है, प्रागभाव छहों द्रव्यों में से किसी एक द्रव्य को वर्त्तमान व पूर्व पर्यायों में एवं प्रध्वंसाभाव छहों द्रव्यों में से किसी एक ही द्रव्य की वर्त्तमान और उत्तर पर्यायों में घटित होता है। एक अत्यन्ताभाव द्रव्यसूचक है, बाकी तीनों प्रभाव पर्यायसूचक हैं।
इन चारों को संक्षेप में यों भी कह सकते हैं कि जिसका अभाव होने पर नियम से कार्य की उत्पत्ति होती है, उसे प्रागभाव कहते हैं ।
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