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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates निष्कर्ष रूप से हम कह सकते हैं कि : १. पारिणामिक भाव के बिना कोई जीव नहीं है। २. औदयिक भाव के बिना कोई संसारी नहीं है । ३. क्षायोपशमिक भाव के बिना कोई छद्मस्थ नहीं है। ४. क्षायिक भाव के बिना क्षायिक समकिती, क्षायिक चारित्रवंत और अरहंत तथा सिद्ध नहीं हैं । ५. औपशमिक भाव के बिना कोई धर्म की शरूआत वाले नहीं हैं। जिज्ञासु - कौनसा भाव कितने काल तक ठहरता है ? प्रवचनकार सुनो! मैं प्रत्येक का काल बताता हूँ - — १. प्रपशमिक भाव सादिसांत होता हैं, क्योंकि इसका काल ही अन्तर्मुहूर्त मात्र है। २. क्षायिक भाव सादिग्रनन्त है और संसार में रहने की अपेक्षा से उत्कृष्ट काल ३३ सागर से कुछ अधिक काल कहा है। ३. क्षायोपशमिक भाव अनादिसांत ज्ञान, दर्शन, वीर्य की अपेक्षा से । सादिसांतः– धर्म की प्रगट पर्याय अपेक्षा से उत्कृष्ट ६६ सागर से कुछ अधिक काल। १ — ४. औदयिक भाव अनादिसांत भव्य जीवों की अपेक्षा से । अनादिअनन्त अभव्य जीवों तथा दूरान्दूरभव्य जीवों की अपेक्षा से । ५. पारिणामिक भाव अनादिअनन्त। — — - पारिणामिक भाव को छोड़कर सभी भाव पर्यायरूप होने से सादिसांत ही होते हैं, किन्तु पर्यायों के प्रवाहरूप क्रम की एकरूपता को लक्ष्य में रखकर यहाँ क्षायिकभाव को सादिग्रनन्त कहा है। यद्यपि प्रदयिकभाव प्रवाहरूप से अनादि का होता है और धर्मी जीव को उसका अंत भी आ जाता है उस अपेक्षा से अनादिसांत कहा है फिर भी उसका प्रवाह किसी जीव को एकरूप नहीं रहता है उसी कारण प्रदयिक भाव को सादिसांत भी कहा। अभव्य जैसे भव्यों को दूरान्दूरभव्य कहते हैं । ४३ Please inform us of any errors on [email protected]
SR No.008318
Book TitleTattvagyan Pathmala 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1989
Total Pages69
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Education, Spiritual, & Philosophy
File Size383 KB
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