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आप स्वयं मोक्षमार्ग प्रकाशक में अपने अध्ययन के बारे में लिखते हैं, “टीका सहित समयसार, पंचास्तिकाय, प्रवचनसार, नियमसार, गोम्मटसार, लब्धिसार, त्रिलोकसार, तत्त्वार्थसूत्र इत्यादि शास्त्र; अरु क्षपणासार, पुरुषार्थसिद्धयुपाय, अष्टपाहुड़, ग्रात्मानुशासन आदि शास्त्र; अरु श्रावक मुनि के आचार के निरूपक अनेक शास्त्र; अरु सुष्ठु कथा सहित पुराणादि शास्त्र इत्यादी अनेक शास्त्र हैं; तिनि विषै हमारे बुद्धि अनुसार अभ्यास वर्त्ते है ।
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उन्होंने अपने जीवन मे छोटी बड़ी बारह रचनाएँ लिखी जिनका परिमाण करीब एक लाख श्लोक प्रमाण हैं, पांच हजार पृष्ठ के करीब । इनमें कुछ तो लोकप्रिय ग्रंथों की विशाल प्रामणिक टीकाएँ हैं और कुछ हैं स्वतंत्र रचनाएँ । गद्य और पद्य दोनों रूपों में पाई जाती हैं। वे कालक्रमानुसार निम्नलिखित हैं :(१) रहस्यपूर्ण चिट्ठी (वि. सं. १८११ ) (२) गोम्मटसार जीवकाण्ड भाषा टीका (३) गोम्मटसार कर्मकाण्ड भाषा टीका (४) अर्थसंदृष्टि अधिकार
(५) लब्धिसार भाषा टीका (६) क्षपणासार भाषा टीका
(७)
(८)
(९)
(१०) मोक्षमार्ग-प्रकाशक (अपूर्ण)
( ११ ) आत्मानुशासन भाषा टीका
( १२ ) पुरुषार्थसिद्धयुपाय भाषा टीका (अपूर्ण)
इसे पं. दौलतराम कासलीवाल ने वि. सं. १८२७ में पूर्ण किया।
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गोम्मटसार पूजा
त्रिलोकसार भाषा टीका
समोशरण रचना वर्णन
* सम्यग्ज्ञान चंद्रिका (वि. सं. १८१८ )
गोम्मटसार जीवकाण्ड व कर्मकाण्ड भाषा टीका, लब्धिसार व क्षपणासार भाषा टीका एवं अर्थसंदृष्टि अधिकार का 'सम्यग्ज्ञान चंद्रिका' भी कहते हैं।
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