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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates अथाहाप्रतिबुद्धः- पूर्वरंग जदि जीवो ण सरीरं तित्थयरायरियसंशुदी चेव । सव्वा वि हवदि मिच्छा तेण दु आदा हवदि देहो ।। २६ ।। यदि जीवो न शरीरं तीर्थकराचार्यसंस्तुतिश्चैव । सर्वापि भवति मिथ्या तेन तु आत्मा भवति देहः ।। २६ ।। ६१ यदि य एवात्मा तदेव शरीरं पुद्गलद्रव्यं न भवेत्तदा भावार्थ:- यदि यह आत्मा दो घड़ी पुद्गलद्रव्यसे भिन्न अपने शुद्ध स्वरूपका अनुभव करे ( उसमें लीन हो ), परिषहके आनेपर भी डिगे नहीं, तो घातियाकर्मका नाश करके, केवलज्ञान उत्पन्न करके, मोक्षको प्राप्त हो । आत्मानुभवकी ऐसी माहिमा है तब मिथ्यात्वका नाश करके सम्यग्दर्शनकी प्राप्ति होना तो सुगम है; इसलिये श्री गुरु प्रधानतासे यही उपदेश दिया है ।। २३ ।। अब अप्रतिबुद्ध जीव कहता है उसकी गाथा कहते हैं:-- जो जीव होय न देह तो, आचार्य वा तीर्थेशकी । मिथ्या बने स्तवना सभी, सो एकता जीवदेहकी ! ।। २६ ।। गाथार्थ:- अप्रतिबुद्ध जीव कहता है कि-- [ यदि ] यदि [ जीवः ] जीव [ शरीरं न ] शरीर नहीं है तो [ तीर्थकराचार्यसंस्तुतिः ] तीर्थंकरों और आचार्योंकी जो स्तुति की गई है [ सर्वा अपि ] सभी [ मिथ्या भवति ] मिथ्या है; [ तेन तु ] इसलिये हम (समझते हैं कि ) [ आत्मा ] जो आत्मा है वह [ देहः च एव ] देह ही [ भवति ] है। टीका:- जो आत्मा है वही पुद्गलद्रव्यस्वरूप यह शरीर है। यदि ऐसा न हो तो तीर्थंकरों और आचार्योंकी जो स्तुति की गई है वह सब मिथ्या सिद्ध होगी । वह स्तुति इसप्रकार है: Please inform us of any errors on [email protected]
SR No.008303
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Spiritual
File Size3 MB
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