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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates समयसार ४८ ( अनुष्टुभ् ) दर्शनज्ञानचारित्रैस्त्रित्वादेकत्वतः स्वयम्। मेचकोऽमेचकश्चापि सममात्मा प्रमाणतः।। १६ ।। दर्शनज्ञानचारित्रैस्त्रिभिः परिणतत्वतः। एकोऽपि त्रिस्वभावत्वाव्यवहारेण मेचकः।। १७ ।। परमार्थेन तु व्यक्तज्ञातृत्वज्योतिषैककः। सर्वभावान्तरध्वंसिस्वभावत्वादमेचकः।। १८ ।। श्लोकार्थ:- [प्रमाणत: ] प्रमाणदृष्टिसे देखा जाये तो [आत्मा] यह आत्मा [समम् मेचक: अमेचकः च अपि] एक ही साथ अनेक अवस्थारूप (“ मेचक') भी है और एक अवस्थारूप ('अमेचक') भी है, [ दर्शन-ज्ञान-चारित्रैः त्रित्वात् ] क्योंकि इसे दर्शन-ज्ञान-चारित्रसे तो त्रित्व (तीनपना) है और [ स्वयम् एकत्वतः] अपनेसे अपनेको एकत्व है। भावार्थ:- प्रमाणदृष्टिमें तीनकालस्वरूप वस्तु द्रव्यपर्यायरूप देखी जाती है, इसलिये आत्माको भी एक ही साथ एक-अनेकस्वरूप देखना चाहिये।। १६ ।। अब नयविवक्षा कहते हैं: श्लोकार्थ:- [एकः अपि] आत्मा एक है, तथापि [ व्यवहारेण ] व्यवहारदृष्टिसे देखा जाये तो [ त्रिस्वभावत्वात् ] तीन-स्वभावरूपताके कारण [ मेचक:] अनेकाकाररूप ( ' मेचक') है, [ दर्शन-ज्ञान-चारित्रैः त्रिभिः परिणतत्वतः ] क्योंकि वह दर्शन, ज्ञान और चारित्र-इन तीन भावोंमें परिणमन करता है। भावार्थ:- शुद्धद्रव्यार्थिक नयसे आत्मा एक है; जब इस नयको प्रधान करके कहा जाता है तब पर्यायार्थिक नय गौण हो जाता है, इसलिये एकको तीनरूप परिणमित होता हुआ कहना सो व्यवहार हुआ, असत्यार्थ भी हुआ। इसप्रकार व्यवहारनयसे आत्माको दर्शन, ज्ञान, चारित्ररूप परिणामों के कारण मेचक 'कहा है ।। १७।। अब परमार्थनयसे कहते हैं: श्लोकार्थ:- [ परमार्थेन तु] शुद्ध निश्चयनयसे देखा जाये तो [ व्यक्तज्ञातृत्वज्योतिषा] प्रगट ज्ञायकत्वज्योतिमात्रसे [एकक:] आत्मा एकस्वरूप है [ सर्वभावान्तर–ध्वंसि-स्वभावत्वात् ] क्योंकि शुद्धद्रव्यार्थिक नयसे सर्व अन्यद्रव्यके स्वभाव तथा अन्यके निमित्तसे होनेवाले विभावोंको दूर करनेरूप उसका स्वभाव है, [अमेचक:] इसलिये वह ‘अमेचक' है-शुद्ध एकाकार है। भावार्थ:- भेददृष्टिको गौण करके अभेददृष्टि से देखा जाये तो आत्मा एकाकार ही है, वही अमेचक है।। १८ ।। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008303
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Spiritual
File Size3 MB
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