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समयसार
प्रथमावृत्ति के प्रकाशकीय निवेदन में से
हम सब मुमुक्षुओंका महा भाग्य है जो ऐसे महान ग्रन्थराज आज हमको प्राप्त हो रहा है अतः उन महान महान उपकारी श्री कुन्दकुन्दाचार्यका हमारे ऊपर बड़ा भारी उपकार है। श्रीमद् अमृतचन्द्राचार्य का भी परम उपकार है जो उन्होंने गाथामें भरे हुए मूल भावोंका दोहन करके उनके भावों को टीका रूप स्पष्ट प्रकाशित कर दिया है और उनपर कलश काव्यरूप रचना भी की है। वर्तमान में तो उनसे भी महान उपकार हमारे ऊपर तो पू० कानजी स्वामी का है कि जिनने अगर पूज्य अमृतचन्द्रा-चार्यकी टीकाको इतना विस्तृत और स्पष्ट करके नहीं समझाया होता तो इस महान ग्रन्थाधिराजके मर्मको समझ सकनेका भी महान सौभाग्य हम सबको कैसे प्राप्त होता ? अभी से २००० वर्ष पूर्व भगवान श्री कुन्दकुन्द आचार्य द्वारा समयसाररूपी मूल सूत्रोंकी रचना हुई, उनके १००० वर्ष उपरान्त ही आचार्य श्रीअमृतचन्द्रदेवके द्वारा उन सूत्ररूप गाथाओं पर गाथाओंके गुप्त भावोंको प्रकाशमें ला देनेवाली आत्मख्याति नामकी टीकाकी रचना हुई और आज उन रचनाके १००० वर्ष उपरान्त ही पूज्य श्री कानजी स्वामी के द्वारा उन टीका पर विस्तृत विशद व्याख्या हो रही है, यह सब परम्परा इस बातकी द्योतक है कि जैसे जैसे जीवोंकी बुद्धि न्यून होती जा रही है वैसे ही वैसे पात्र जीवोंको यथार्थ तत्त्व समझने योग्य स्पष्टता होती चली जा रही है। यह वर्तमान के आपके प्रवचन आगामी १००० वर्ष तक, पात्र जीवोंकी परम्परा बनाये रखने के लिये निश्चय पूर्वक कारण होंगे।
इस ग्रन्थराज की रचना के सम्बन्धमें, ग्रन्थके विषयके बाबतमें गुजराती भाषामें अनुवाद करने का कारण एवं अनुवादमें कौन कौन से ग्रन्थोंका आधार लिये गया आदि अनेक विषयोंको श्री हिम्मतलाल भाई ने अपने उपोद्घात में सुन्दर रीतिसे स्पष्ट किया है वह पाठकोंको जरूर पढ़ने योग्य है।
इस समयसार के गुजराती भाषा में अनुवादकर्ता तथा गुजराती में हरीगीतिका छन्दकी रचना करने वाले तथा हिन्दी हरीगीतिका छन्दको जो इस प्रकाशन में दिये गये हैं उनका सम्पूर्णतया संशोधन करने वाले श्री हिम्मतलाल भाई बी. एससी. हैं उनकी प्रशंसा जितनी भी की जावे कम है। उनके विषयमें श्री भाई श्री रामजीभाई माणेकचन्दजी दोशी प्रमुख श्री दि० जैन स्वाध्याय मन्दिर ट्रस्ट ने निम्न शब्दों में प्रशंसा की है :--
___ “भाई श्री हिम्मतलाल भाई, अध्यात्मरसिक, शांत, विवेकी, गम्भीर और वैराग्यशाली सज्जन हैं इसके अलावा उच्च शिक्षा प्राप्त और संस्कृत में प्रवीण हैं। ग्रन्थाधिराज श्री समयसारजी, प्रवचनसार, नियमसार तथा पंचास्तिकायका गुजराती अनुवाद भी उन्होंने ही किया है। इस प्रकार श्रीमद् कुन्दकुन्दभगवानके
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