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________________ Version 001: remember to check www.AtmaDharma.com for updates [परिशिष्टम्] ( अनुष्टुभ् ) अत्र स्याद्वादशुद्ध्यर्थ वस्तुतत्त्वव्यवस्थितिः। उपायोपेयभावश्च मनाग्भूयोऽपि चिन्त्यते।। २४७ ।। [ परिशिष्ट] (यहाँ तक भगवत् कुंदकुंदाचार्यदेवकी ४१५ गाथाओंका विवेचन टीकाकार श्री अमृतचंद्राचार्यदेवने किया, और उस विवेचन में कलशरूपसे तथा सूचनिकारूपसे २४६ काव्य कहे हैं। अब टीकाकार आचार्यदेवे विचारते हैं कि-इस शास्त्रमें ज्ञानको प्रधान करके आत्माको ज्ञानमात्र कहते आये हैं; इसलिये कोई यह तर्क करे कि 'जैनमत तो स्याद्वाद है; तब क्या आत्माको ज्ञानमात्र कहनेसे एकांत नहीं हो जाता ? अर्थात् स्यादवादके साथ विरोध नहीं आता? और एक ही ज्ञानमें उपायतत्त्व तथा उपेयतत्त्व-दोनों कैसे घटित होते हैं ? ' ऐसे तर्कका निराकरण करनेके लिये टीकाकार आचार्यदेव यहाँ सर्वविशुद्धज्ञान अधिकारके अन्त में परिशिष्टरूपसे कुछ कहते हैं। उसमें प्रथम श्लोक इसप्रकार है:-) श्लोकार्थ:- [अत्र ] यहाँ [ स्याद्वाद-शुद्धि-अर्थ ] स्याद्वादकी शुद्धिके लिये [ वस्तु-तत्त्व-व्यवस्थितः] वस्तुतत्त्वकी व्यवस्था [च] और [ उपाय-उपेय-भावः] ( एक ही ज्ञानमें उपाय-उपेयत्व कैसे घटित होता है यह बतलाने ले लिये) उपायउपेयभावका [ मनाक् भूयः अपि ] जरा फिरसे भी [ चिन्त्यते] विचार करते हैं। भावार्थ:-वस्तुका स्वरूप सामान्यविशेषात्मक अनेक-धर्मस्वरूप होनेसे वह स्याद्वादसे ही सिद्ध किया जा सकता है। इसप्रकार स्याद्वादकी शुद्धता (प्रमाणिकता, सत्यता, निर्दोषता, निर्मलता, अद्वितीयता) सिद्ध करने के लिये इस परिशिष्टमें वस्तुस्वरूपका विचार किया जाता है। (इससे यह भी बताया जायेगा कि इस शास्त्रमें आत्माको ज्ञानमात्र कहा है फिर भी स्याद्वादके साथ विरोध नहीं आता।) और दूसरे, एक ही ज्ञानमें साधकत्त्व तथा साध्यत्त्व कैसे बन सकता है यह समझाने के लिये ज्ञानका उपाय-उपेयभाव अर्थात् साधकसाध्यभाव भी इस परिशिष्टमें विचार किया जावेगा। २४७। (अब प्रथम आचार्यदेव वस्तुस्वरूपके विचार द्वारा स्याद्वादको सिद्ध करते Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008303
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Spiritual
File Size3 MB
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