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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates समयसार ५७० न खलु द्रव्यलिङ्गं मोक्षमार्गः, शरीराश्रितत्वे सति परद्रव्यत्वात्। दर्शनज्ञानचारित्राण्येव मोक्षमार्गः, आत्माश्रितत्वे सति स्वद्रव्यत्वात्। यत एवम् तम्हा जहित्तु लिंगे सागारणगारए हे वा गहिदे। दंसणणाणचरित्ते अप्पाणं जंज मोक्खपहे।। ४११ ।। तस्मात् जहित्वा लिङ्गानि सागारैरनगारकैर्वा गृहीतानि। दर्शनज्ञानचारित्रे आत्मानं युक्ष्व मोक्षपथे।। ४११ ।। टीका:-द्रव्यलिंग वास्तवमें मोक्षमार्ग नहीं है, क्योंकि (द्रव्यलिंग) शरीराश्रित होनेसे परद्रव्य है। दर्शन-ज्ञान-चारित्र ही मोक्षमार्ग है, क्योंकि वे आत्माश्रित होनेसे स्वद्रव्य हैं। भावार्थ:-जो मोक्ष है सो सर्व कर्मके अभावरूप आत्मपरिणाम (-आत्माके परिणाम) हैं, इसलिये उसका कारण भी आत्मा परिणाम ही होना चाहिये। दर्शनज्ञान-चारित्र आत्माके परिणाम हैं; इसलिये निश्चयसे वही मोक्षका मार्ग है। जो लिंग है सो देहमय है; और जो देह है वह पुद्गलद्रव्यमय है; इसलिये आत्माके लिये देह मोक्षमार्ग नहीं है। परमार्थसे अन्य द्रव्यको अन्य द्रव्य कुछ नहीं करता ऐसा नियम है। जब कि ऐसा है (अर्थात् यदि द्रव्यलिंग मोक्षमार्ग नहीं है और दर्शनज्ञानचारित्र ही मोक्षमार्ग है) तो इसप्रकार (निम्नप्रकार) से करना चाहिये-यह उपदेश है: यों छोड़कर सागार या अनगार-धारित लिंग को ।। चारित्र-दर्शन-ज्ञानमें तू जोड़ रे! निज आत्मको ।। ४११ ।। गाथार्थ:- [ तस्मात् ] इसलिये [ सागारैः ] सागारों द्वारा ( -गृहस्थों द्वारा) [अनगारकैः वा ] अथवा अणगारोंके द्वारा (-मुनियोंके द्वारा) [ गृहीतानि ] ग्रहण किये गये [लिङ्गानि] लिंगोंको [जहित्वा] छोड़कर, [दर्शनज्ञानचारित्रे] दर्शनज्ञानचारित्रमें- [ मोक्षपथे] जो कि मोक्षमार्ग है उसमें- [आत्मानं युंक्ष्व ] तू आत्माको लगा। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008303
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Spiritual
File Size3 MB
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