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समयसार
प्राप्ति हुई है उन्हें पंद्रह-वान तकका सोना कोई प्रयोजनवान नहीं होता, और जिन्हें सोलह-वानवाले शुद्ध सोनेकी प्राप्ति नहीं हुई है उन्हें तबतक पंद्रह-वान तकका सोना भी प्रयोजनवान है। इसीप्रकार यह जीव नामक पदार्थ है, जो कि पुद्गलके संयोगसे अशुद्ध अनेकरूप हो रहा है। उसका, समस्त परद्रव्योंसे भिन्न, एक ज्ञायकत्वमात्रका-ज्ञान, श्रद्धान तथा आचरणरूप प्राप्ति-यह तीनों जिसे हो गये हैं उसे पुद्गलसंयोगजनित अनेकरूपताको कहनेवाला अशुद्धनय कुछ भी प्रयोजनवान (किसी मतलबका) नहीं है; किन्तु जहाँ तक शुद्धभावकी प्राप्ति नहीं हुई वहाँ तक जितना अशुद्धनयका कथन है उतना यथापदवी प्रयोजनवान है। जहाँ तक यथार्थ ज्ञानश्रद्धानकी प्राप्तिरूप सम्यग्दर्शनकी प्राप्ति नहीं हुई हो वहाँ तक तो जिनसे यथार्थ उपदेश मिलता है ऐसे जिनवचनोंको सुनना, धारण करना तथा जिनवचनोंको कहने वाले श्री जिन-गुरुकी भक्ति, जिनबिंबके दर्शन इत्यादि व्यवहारमार्गमें प्रवृत्त होना प्रयोजनवान है; और जिन्हें श्रद्धान-ज्ञान तो हुआ है किन्तु साक्षात् प्राप्ति नहीं हुई उन्हें पूर्वकथित कार्य, परद्रव्यका आलंबन छोड़नेरूप अणुव्रत-महाव्रतका ग्रहण, समिति, गुप्ति, और पंच परमेष्ठीका ध्यानरूप प्रवर्तन, तथा उसी प्रकार प्रवर्तन करनेवालोंकी संगति एवं विशेष जाननेके लिये शास्त्रोंका अभ्यास करना इत्यादि व्यवहारमार्गमें स्वयं प्रवर्तन करना और दूसरोंको प्रवर्तन कराना-ऐसे व्यवहारनयका उपदेश अंगीकार करना प्रयोजनवान है। व्यवहारनयको कथंचित् असत्यार्थ कहा गया है; किन्तु यदि कोई उसे सर्वथा असत्यार्थ जानकर छोड़ दे तो वह शुभोपयोगरूप व्यवहारको ही छोड़ देगा और उसे शुद्धोपयोगकी साक्षात् प्राप्ति तो नहीं हुई है, इसलिये उल्टा अशुभोपयोगमें ही आकर, भ्रष्ट होकर, चाहे जैसी स्वेच्छारूप प्रवृत्ति करेगा तो वह नरकादि गति तथा परंपरासे निगोदको प्राप्त होकर संसारमें ही भ्रमण करेगा। इस लिये शुद्धनयका विषय जो साक्षात् शुद्ध आत्मा है उसकी प्राप्ति जबतक न हो तब तक व्यवहार भी प्रयोजनवान है-ऐसा स्याद्वाद मतमें श्री गुरुओंका उपदेश है।
इसी अर्थका कलशरूप काव्य टीकाकार कहते हैं :
* व्यवहारनयके उपदेशसे ऐसा नहीं समझना चाहिये कि आत्मा परद्रव्यकी क्रिया कर सकता है, लेकिन ऐसा समझना की व्यवहारोपदृिष्ट शुभभावोंको आत्मा व्यवहारसे कर सकता है। और उस उपदेशसे ऐसा भी नहीं समझना चाहिये कि शुभभाव करने से आत्मा शुद्धताको प्राप्त करता है, परंतु ऐसा समझना कि साधक दशामें भूमिकाके अनुसार शुभ भाव आये बिना नहीं रहते।
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