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________________ ५५८ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates समयसार कम्मं णाणं ण हवदि जम्हा कम्मं ण याणदे किंचि । तम्हा अण्णं णाणं अण्णं कम्मं जिणा बेंति ।। ३९७ ।। धम्मो णाणं ण हवदि जम्हा धम्मो ण याणदे किंचि । तम्हा अण्णं णाणं अण्णं धम्मं जिणा बेंति ।। ३९८ ।। णाणमधम्मो ण हवदि जम्हाधम्मो ण याणदे किंचि । तम्हा अण्णं णाणं अण्णमधम्मं जिणा बेंति ।। ३९९ ।। कालो णाणं ण हवदि जम्हा कालो ण याणदे किंचि । तम्हा अण्णं गाणं अण्णं कालं जिणा बेंति ।। ४०० ।। आयासं पि ण णाणं जम्हायासं ण याणदे किंचि । तम्हायासं अण्णं अण्णं णाणं जिणा बेंति ।। ४०१ ।। णज्झवसाणं णाणं अज्झवसाणं अचेदणं जम्हा । तम्हा अण्णं गाणं अज्झवसाणं तहा अण्णं ।। ४०२ ।। जम्हा जाणदि णिच्चं तम्हा जीवो दु जाणगो णाणी । गाणं च जाणयादो अव्वदिरित्तं मुणेयव्वं ।। ४०३ ।। रे! कर्म है नहिं ज्ञान क्योंकि कर्म कुछ जाने नहीं । इस हेतु से है ज्ञान अन्य रु कर्म अन्य जिनवर कहे ।। ३९७ ।। रे! धर्म है नहिं ज्ञान क्योंकि धर्म कुछ जाने नहीं । इस हेतु से है ज्ञान अन्य रु धर्म अन्य जिनवर कहे ।। ३९८ ।। रे! अधर्म है नहिं ज्ञान क्योंकि अधर्म कुछ जाने नहीं । इस हेतु से है ज्ञान अन्य रु अधर्म अन्य प्रभु कहे ।। ३९९ ।। रे! काल है नहिं ज्ञान क्योंकि काल कुछ जाने नहीं । इस हेतु से है ज्ञान अन्य रु काल अन्य प्रभु कहे ।। ४०० ।। रे! आकाश है नहिं ज्ञान क्योंकि आकाश कुछ जाने नहीं । इस हेतु से है ज्ञान अन्य रु आकाश अन्य प्रभु कहे ।। ४०१ ।। रे! ज्ञान अध्यवसान नहिं क्योंकि अचेतन रूप है । इस हेतु से है ज्ञान अन्य रु अन्य अध्यवसान है ।। ४०२ ।। रे! सर्वदा जाने हि इससे जीव ज्ञायक ज्ञानी है । अरु ज्ञान है ज्ञायकसे अव्यतिरिक्त यों ज्ञातव्य है ।। ४०३ ।। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008303
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Spiritual
File Size3 MB
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