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Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates सर्वविशुद्धज्ञान अधिकार
अण्णदविएण अण्णदवियस्स णो कीरए गुणुप्पाओ । तम्हा दु सव्वदव्वा उप्पज्जंते सहावेण ।। ३७२ ।। अन्यद्रव्येणान्यद्रव्यस्य न क्रियते गुणोत्पादः । तस्मात्तु सर्वद्रव्याण्युत्पद्यन्ते स्वभावेन ।। ३७२ ।।
न च
जीवस्य परद्रव्यं रागादीनुत्पादयतीति शङ्कयम्; अन्यद्रव्येणान्यद्रव्यगुणोत्पादकरणस्यायोगात्; सर्वद्रव्याणां स्वभावेनैवोत्पादात्। तथाहि मृत्तिका कृम्भभावेनोत्पद्यमाना किं कुम्भकारस्वभावेनोत्पद्यते, मृत्तिकास्वभावेन ? कुम्भकारस्वभावेनोत्पद्यते
किं
यदि
तदा
कुम्भकरणाहङ्कारनिर्भरपुरुषाधिष्ठितव्यापृतकर-पुरुषशरीराकारः कुम्भः स्यात्। न च तथास्ति, द्रव्यान्तरस्वभावेन द्रव्यपरिणामोत्पाद
भावार्थ:-रागद्वेष चेतनके ही परिणाम हैं। अन्य द्रव्य आत्माको रागद्वेष उत्पन्न नहीं करा सकता; क्योंकि सर्व द्रव्योंकी उत्पत्ति अपने अपने स्वभावसे ही होती है, अन्य द्रव्यमें अन्य द्रव्यके गुणपर्यायोंकी उत्पत्ति नहीं होती। २१९। अब इस अर्थको गाथा द्वारा कहते हैं:
को द्रव्य दूसरे द्रव्यमें उत्पाद नहिं गुणका करे ।
इस हेतु से सब ही द्रव्य उत्पन्न आप स्वभावसे ।। ३७२ ।।
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गाथार्थ:- [ अन्यद्रव्येण ] अन्य द्रव्यसे [ अन्यद्रव्यस्य ] अन्य द्रव्यके
[ गुणोत्पाद: ] गुणकी उत्पत्ति [ न क्रियते ] नहीं की जा सकती, [तस्मात् तु] इससे ( यह सिद्धांत हुआ कि ) [ सर्वद्रव्याणि ] सर्व द्रव्य [ स्वभावेन ] अपने आप स्वभाव [ उत्पद्यन्ते ] उत्पन्न होते हैं ।
टीका :- और भी ऐसी शंका नहीं करना चाहिये कि - पर द्रव्य जीवको रागादिक उत्पन्न करते हैं; क्योंकि अन्य द्रव्यके द्वारा अन्य द्रव्यके गुणोंको उत्पन्न करने की अयोग्यता है; क्योंकि सर्व द्रव्योंका स्वभावसे ही उत्पाद होता है। यह बात दृष्टांत पूर्वक समझाई जा रही है:
मिट्टी घट भावरूप से उत्पन्न होती हुई कुम्हार के स्वभाव से उत्पन्न होती है या मिट्टी के ? यदि कुम्हार के स्वभाव से उत्पन्न होती हो तो जिसमें घट को बनाने के अहंकारसे भरा हुआ पुरुष विद्यमान है और जिसका हाथ ( घड़ा बनानेका) व्यापार करता है ऐसे पुरुषके शरीराकार घट होना चाहिये । परंतु ऐसा तो नहीं होता, क्योंकि अन्यद्रव्यके स्वभावसे किसी द्रव्यके परिणामका उत्पाद
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