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सर्वविशुद्धज्ञान अधिकार
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यथा परद्रव्यं सेटयति सेटिकात्मनः स्वभावेन। तथा परद्रव्यं श्रद्धत्ते सम्यग्दृष्टिः स्वभावेन।। ३६४ ।। एवं व्यवहारस्य तु विनिश्चयो ज्ञानदर्शनचरित्रे। भणितोऽन्येष्वपि पर्यायेषु एवमेव ज्ञातव्यः।। ३६५ ।।
सेटिकात्र तावच्छेतगुणनिर्भरस्वभावं द्रव्यम्। तस्य तु व्यवहारेण श्वैत्यं कुड्यादिपरद्रव्यम्। अथात्र कुड्यादेः परद्रव्यस्य श्वैत्यस्य श्वेतयित्री सेटिका किं भवति किं न भवतीति तदुभयतत्त्वसम्बन्धो मीमांस्यते-यदि सेटिका कुड्यादेर्भवति तदा यस्य यद्भवति तत्तदेव भवति, यथात्मनो ज्ञानं भवदात्मैव भवतीति तत्त्वसम्बन्धे जीवति सेटिका -कुड्यादेर्भवन्ती कुड्यादिरेव भवेत; एवं सति सेटिकायाः स्वद्रव्योच्छेदः। न च द्रव्यान्तरसंक्रमस्य पूर्वमेव प्रतिषिद्धत्वाव्यस्यास्त्युच्छेदः। ततो न भवति सेटिका -- कुड्यादेः। यदि न भवतिसेटिका कुड्यादेस्तर्हि कस्य सेटिका भवति ? सेटिकाया एव सेटिका भवति। ननु
[ यथा] जैसे [ सेटिका] कलई [आत्मनः स्वभावेन] अपने स्वभावसे [ परद्रव्यं] परद्रव्यको [ सेटयति] सफेद करती है, [ तथा] उसीप्रकार [ सम्यग्दृष्टि:] सम्यग्दृष्टि [ स्वभावेन] अपने स्वभावसे [ परद्रव्यं] परद्रव्यको [ श्रद्धत्ते ] श्रद्धान करता है। [ एवं तु] इसप्रकार [ ज्ञानदर्शनचरित्रे ] ज्ञान-दर्शन-चारित्र में [ व्यवहारनयस्य विनिश्चयः ] व्यवहारनयका निर्णय [भणित:] कहा है; [अन्येषु पर्यायेषु अपि] अन्य पर्यायोंमें भी [ एवम् एव ज्ञातव्यः] इसीप्रकार जानना चाहिये।
टीका:-इस जगतमें कलई है वह श्वेतगुणसे परिपूर्ण स्वभाववाला द्रव्य है। दीवार-आदि परद्रव्य व्यवहारसे उस कलईका श्वैत्य है (अर्थात् कलई द्वारा श्वेत किये जाने योग्य पदार्थ है)। अब , 'श्वेत करनेवाली कलई , श्वेत की जाने योग्य जो दीवार आदि परद्रव्य की है या नहीं?' इसप्रकार उन दोनों के तात्त्विक ( पारमार्थिक) संबंधका यहाँ विचार किया जाता है:-यदि कलई दीवार-आदि परद्रव्यकी हो तो क्या हो वह प्रथम विचार करते हैं: ‘जिसका जो होता है वह वही होता है, जैसे आत्माका ज्ञान होने से ज्ञान वह आत्मा ही है ( पृथक द्रव्य नहीं);'-ऐसा तात्त्विक संबंध जीवित ( अर्थात् विद्यमान) होनेसे, कलई यदि दीवार-आदिकी हो तो कलई वह दीवार आदि ही होगी ( अर्थात् कलई दीवार-आदिस्वरूप ही होना चाहिये, दीवारआदिसे पृथक द्रव्य नहीं होना चाहिये); ऐसा होनेपर, कलई स्वद्रव्यका उच्छेद ( नाश) हो जायेगा। परंतु द्रव्यका उच्छेद तो नहीं होता, क्योंकि एक द्रव्यका अन्य द्रव्यरूपमें सक्रमण होनेका तो पहले ही निषेध किया है। इससे ( यह सिद्ध हुआ कि) कलई दीवार-आदिकी नहीं है। (अब आगे और विचार करते हैं:) यदि कलई दीवार-आदिकी नहीं, तो कलई किसकी है ? कलई की ही कलई है।
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