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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates सर्वविशुद्धज्ञान अधिकार जम्हा कम्मं कुव्वदि कम्मं देदि हरदि त्ति जं किंचि । तम्हा उ सव्वजीवा अकारगा होंति आवण्णा ।। ३३५ ।। पुरिसित्थियाहिलासी इत्थीकम्मं च पुरिसमहिलसदि । एसा आयरियपरंपरागदा एरिसी दु सुदी ।। ३३६ ।। तम्हाण को वि जीवो अबंभचारी दु अम्ह उवदेसे। जम्हा कम्मं चेव हि कम्मं अहिलसदि इदि भणिदं ।। ३३७ । जम्हा धादेदि परं परेण घादिज्जदे य सा पयडी । एदेणत्थेणं किर भण्णदि परघादणामेत्ति ।। ३३८ ।। तम्हाण को वि जीवो वधादओ अत्थि अम्ह उवदेसे । जम्हा कम्मं चेव हि कम्मं घादेदि इदि भणिदं ।। ३३९ ।। एवं संखुवएसं जे दु परूवेंति एरिसं समणा । करता करम, देता करम, हरता करम, - सब कुछ करे । इस हेतुसे यह है सुनिश्चित जीव अकारक सर्व है ।। ३३५ ।। 'पुंकर्म इच्छे नारिको स्त्रीकर्म इच्छे पुरुषको ' । -ऐसी श्रुति आचार्यदेव परंपरा अवतीर्ण है ।। ३३६ ।। इस रीत 'कर्महि कर्मको ईच्छे ' कहा है शास्त्रमें । अब्रह्मचारी यों नहिं जो जीव हम उपदेशमें ।। ३३७ ।। अरु जो हने परको, हनन हो परसे, वोह प्रकृति है । -इस अर्थमें परघात नामक कर्मका निर्देश है ।। ३३८ ।। इस रीत' कर्म हि कर्मको हनता ' कहा है शास्त्रमें । इससे न को भी जीव है हिंसक जु हम उपदेशमें ।। ३३९ ।। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com ४७१
SR No.008303
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Spiritual
File Size3 MB
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