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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates समयसार ४६० (अनुष्टुभ् ) ये तु कर्तारमात्मानं पश्यन्ति तमसा तताः। सामान्यजनवत्तेषां: न मोक्षोऽपि मुमुक्षताम्।। १९९ ।। लोयस्स कुणदि विण्हू सुरणारयतिरियमाणुसे सत्ते। समणाणं पि य अप्पा जदि कुव्वदि छव्विहे काऐ।।३२१ ।। अभाव ही होता है। समुद्रमें एक बूंदकी गिनती ही क्या है ? और इतना विषेश जानना चाहिये कि-केवलज्ञानी तो साक्षात् शुद्धात्मस्वरूप ही है और श्रुतज्ञानी भी शुद्धनयके अवलंबनसे आत्माको ऐसा ही अनुभव करते हैं; प्रत्यक्ष और परोक्षका ही भेद है। इसलिये श्रुतज्ञानीको ज्ञान-श्रद्धानकी अपेक्षासे ज्ञातादृष्टापन ही है और चारित्रकी अपेक्षासे प्रतिपक्षी कर्मका जितना उदय है उतना घात है और उसे नष्ट करनेका उद्यम भी है। जब कर्मका अभाव हो जायेगा तब साक्षात् यथाख्यात चारित्र प्रगट होगा और तब केवलज्ञान प्रगट होगा। यहाँ सम्यग्दृष्टिको जो ज्ञानी कहा जाता है सो वह मिथ्यात्वके अभावकी अपेक्षासे कहा जाता है। यदि ज्ञानसामान्यकी अपेक्षा लें तो सभी जीव ज्ञानी हैं और विशेष की अपेक्षा लें तो जबतक किंचित्मात्र भी अज्ञान है तबतक ज्ञानी नहीं कहा जा सकताजैसे सिद्धांत ग्रन्थोंमें भावोंका वर्णन करते हुए, जबतक केवलज्ञान उत्पन्न न हो तबतक अर्थात् बारहवें गुणस्थान तक अज्ञानभाव कहा जाता है। इसलिये यहाँ जो ज्ञानी-अज्ञानीपन कहा है वह सम्यक्त्व-मिथ्यात्वकी अपेक्षासे ही जानना चाहिये। अब, जो-जैन साधु भी-सर्वथा एकांतके आशयसे आत्माको कर्ता ही मानते हैं उनका निषेध करते हुए, आगामी गाथाका सूचक श्लोक कहते हैं: श्लोकार्थ:- [ये तु तमसा तताः आत्मानं कर्तारम् पश्यन्ति] जो अज्ञान अंधकारसे आच्छादित होते हुए आत्माको कर्ता मानते हैं, [ मुमुक्षताम् अपि ] वे भले ही मोक्षके ईच्छुक हों तथापि [ सामान्यजनवत् ] सामान्य (लौकिक) जनोंकी भाँति [ तेषां मोक्षः न ] उनकी भी मुक्ति नहीं होती। १९९।। अब इसी अर्थको गाथा द्वारा कहते हैं: ज्यों लोक माने 'देव, नारक आदि जीव विष्णु करे । त्यों श्रमण भी माने कभी षट्कायको आत्मा करे' ।। ३२१।। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008303
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Spiritual
File Size3 MB
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