________________
Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates
बंध अधिकार
४१३
द्रव्यभावयोर्निमित्तनैमित्तिकभावोदाहरणं चैतत्
आधाकम्मादीया पोग्गलदव्वस्स जे इमे दोसा। कह ते कुव्वदि णाणी परदव्वगुणा दु जे णिच्चं ।। २८६ ।। आधाकम्मं उद्देसियं च पोग्गलमयं इमं दव्वं । कह तं मम होदि कयं जं णिच्चमचेदणं वुत्तं ।। २८७ ।।
अच्छा जानना, उनके संस्कार रहना, उनके प्रति ममत्व रहना, भाव-अप्रतिक्रमण है। इसीप्रकार आगामी काल संबंधी परद्रव्योंकी इच्छा रखना, ममत्व रखना, द्रव्य अप्रत्याख्यान है और उन परद्रव्योंके निमित्तसे आगामी कालमें होनेवाले रागादिभावोंकी इच्छा रखना, ममत्व रखना, भाव-अप्रत्याख्यान है। इसप्रकार द्रव्य अप्रतिक्रमण और भाव-अप्रतिक्रमण तथा द्रव्य-अप्रत्याख्यान और भाव-अप्रत्याख्यान-ऐसा जो अप्रतिक्रमण और अप्रत्याख्यानका दो प्रकारका उपदेश है वह द्रव्य-भावके निमित्तनैमित्तिकभावोंको बतलाता है। इससे यह सिद्ध हुआ कि परद्रव्य तो निमित्त हैं और रागादिभाव नैमित्तिक हैं। इसप्रकार आत्मा रागादिभावोंको स्वयमेव न करनेसे रागादिभावोंका अकर्ता ही है ऐसा सिद्ध हुआ। इसप्रकार यद्यपि यह आत्मा रागादिभावोंका अकर्ता ही है तथापि जबतक उसके निमित्तभूत परद्रव्यके अप्रतिक्रमणअप्रत्याख्यान है तबतक उसके रागादिभावोंका अप्रतिक्रमण-अप्रत्याख्यान है, और जबतक रागादिभावोंका अप्रतिक्रमण-अप्रत्याख्यान है तबतक वह रागादिभावोंका कर्ता ही है; यब वह निमित्तभूत परद्रव्यका प्रतिक्रमण-प्रत्याख्यान करता है तब उसके नैमित्तिक रागादिभावोंका भी प्रतिक्रमण-प्रत्याख्यान हो जाता है, और जब रागादिभावोंका प्रतिक्रमण-प्रत्याख्यान हो जाता है तब वह साक्षात् अकर्ता ही है।
अब द्रव्य और भावकी निमित्त-नैमित्तिकताका उदाहरण देते हैं:
है अधः कर्मादिक जु पुदगलद्रव्यके हि दोष ये । कैसे करे ज्ञानी' सदा परद्रव्यके जो गुणहि हैं ? ।। २८६ ।। उदेशि त्योंही अधःकर्मी पौद्गलिक यह द्रव्य जो। कैसे हि मुझकृत होय नित्य अजीव वर्णा जिसहि को ? ।। २८७।।
Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com