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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates समयसार ४१२ आत्मात्मना रागादीनामकारक एव, अप्रतिक्रमणाप्रत्याख्यानयोद्वैविध्योपदेशान्यथानुपपत्तेः। यः खलु अप्रतिक्रमणाप्रत्याख्यानयोर्द्रव्यभावभेदेन द्विविधोपदेशः स, द्रव्यभावयोर्निमित्तनैमित्तिकभावं प्रथयन् , अकर्तृत्वमात्मनो ज्ञापयति। तत एतत् स्थितंपरद्रव्यं निमित्तं, नैमित्तिका आत्मनो रागादिभावाः। यद्येवं नेष्येत तदा द्रव्याप्रतिक्रमणाप्रत्याख्यानयोः कर्तृत्वनिमित्तत्वोपदेशोऽनर्थक एव स्यात्, तदनर्थकत्वे त्वेकस्यैवात्मनो रागादिभावनिमित्तत्वापत्तौ नित्यकर्तृत्वानुषङ्गान्मोक्षाभाव: प्रसजेच्च। ततः परद्रव्यमेवात्मनो रागादिभावनिमित्तमस्तु। तथा सति तु रागादीनामकारक एवात्मा। तथापि यावन्निमित्तभूतं द्रव्यं न प्रतिक्रामति न प्रत्याचष्टे च तावन्नैमित्तिकभूतं भावं न प्रतिक्रामति न प्रत्याचष्टे च, यावत्तु भावं न प्रतिक्रामति न प्रत्याचष्टे च तावत्कर्तेव स्यात्। यदैव निमित्तभूतं द्रव्यं प्रतिक्रामति प्रत्याचष्टे च तदैव नैमित्तिकभूतं भावं प्रतिक्रामति प्रत्याचष्टे च, यदा तु भावं प्रतिक्रामति प्रत्याचष्टे च तदा साक्षादकतैव स्यात्। टीका:-आत्मा स्वतः रागादिका अकारक ही है; क्योंकि, यदि ऐसा न हो तो ( अर्थात् यदि आत्मा स्वतः ही रागादिभावोंका कारक हो तो) अप्रतिक्रमण और अप्रत्याख्यानकी द्विविधताका उपदेश नहीं हो सकता। अप्रतिक्रमण और अप्रत्याख्यानका जो वास्तवमें द्रव्य और भावके भेदसे द्विविध (दो प्रकारका) उपदेश है वह, द्रव्य और भावके निमित्त-नैमित्तिकत्व को प्रकट करता हुआ, आत्माके अकर्तृत्वको ही बतलाता है। इसलिये यह निश्चित हुआ कि परद्रव्य निमित्त है और आत्माके रागादिभाव नैमित्तिक हैं। यदि ऐसा न माना जाये तो द्रव्य-अप्रतिक्रमण और द्रव्य-अप्रत्याख्यानका कर्तृत्वके निमित्तरूपका उपदेश निरर्थक ही होगा, और वह निरर्थक होनेपर एक ही आत्माको रागादिकभावोंका निमित्तत्व आ जायेगा, जिससे नित्य कर्तृत्वका प्रसंग आ जायेगा, जिससे मोक्षका अभाव सिद्ध होगा। इसलिये परद्रव्य ही आत्माके रागादिभावोंका निमित्त हो। और ऐसा होनेपर, यह सिद्ध हुआ कि आत्मा रागादिका अकारक ही है। (इसप्रकार यद्यपि आत्मा रागादिका अकारक ही है) तथापि जबतक यह निमित्तभूत द्रव्यका (-परद्रव्यका) प्रतिक्रमण तथा प्रत्याख्यान नहीं करता तबतक नैमित्तिकभूत भावोंका (-रागादिभावोंका) प्रतिक्रमण तथा प्रत्याख्यान नहीं करता, और जबतक इन भावोंका प्रतिक्रमण तथा प्रत्याख्यान नहीं करता तबतक वह उनका कर्ता ही है; जबतक निमित्तभूत द्रव्यका प्रतिक्रमण तथा प्रत्याख्यान करता है तभी नैमित्तिकभूत भावोंका प्रतिक्रमण तथा प्रत्याख्यान करता है। और जब इन भावोंका प्रतिक्रमण तथा प्रत्याख्यान होता है तब वह साक्षात् अकर्ता ही है। भावार्थ:-अतीत कालमें जो परद्रव्योंका ग्रहण किया था उन्हें वर्तमानमें अच्छा समझना, उनके संस्कार रहना, उनके प्रति ममत्व रहना, वह द्रव्य अप्रतिक्रमण है और उन परद्रव्योंके निमित्तसे जो रागादिभाव हुए थे उन्हें वर्तमानमें Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008303
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Spiritual
File Size3 MB
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