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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates निर्जरा अधिकार ३५३ यतो हि सम्यग्दृष्टि: टोत्कीर्णेकज्ञायकभावमयत्वेन कर्मबन्धशङ्काकरमिथ्यात्वादिभावाभावान्निरशङ्कः, ततोऽस्य शङ्काकृतो नास्ति बन्धः, किन्तु निर्जरैव। जो दु ण करेदि कंखं कम्मफलेसु तह सव्वधम्मेसु। सो णिक्कंखो चेदा सम्मादिट्ठी मुणेदव्वो।। २३० ।। यस्तु न करोति कांक्षां कर्मफलेषु तथा सर्वधर्मेषु। स निष्कांक्षश्चेतयिता सम्यग्दृष्टितिव्यः।। २३० ।। यतो हि सम्यग्दृष्टि: टङ्कोत्कीर्णेकज्ञायकभावमयत्वेन सर्वेष्वपि कर्मफलेषु सर्वेषु वस्तुधर्मेषु च कांक्षाभावानिष्कांक्षः, ततोऽस्य कांक्षाकृतो नास्ति बन्धः, किन्तु निर्जरैव। करनेवाले) [ तान् चतुरः अपि पादान् ] मिथ्यात्वादि भावरूप चारों पादोंको [ छिनत्ति] छेदता है, [ सः] उसको [ निरशकः ] निःशंक [ सम्यग्दृष्टि: ] सम्यग्दृष्टि [ ज्ञातव्यः ] जानना चाहिये। टीका:-क्योंकि सम्यग्दृष्टि, टंकोत्कीर्ण एक ज्ञायकभावमयताके कारण कर्मबंध संबंधी शंका करनेवाले ( अर्थात् जीव निश्चयतः कर्मोंसे बंधा हुआ है ऐसा संदेह अथवा भय करनेवाले ) मिथ्यात्वादि भावोंका ( उसको) अभाव होनेसे, निःशंक है इसलिये उसे शंकाकृत बंध नहीं किन्तु निर्जरा ही है। भावार्थ:-सम्यग्दृष्टिको जिस कर्मका उदय आता है उसका वह, स्वामित्वके अभावके कारण, कर्ता नहीं होता। इसलिये भयप्रकृतिका उदय आने पर भी सम्यग्दृष्टि जीव निःशंक रहता है, स्वरूपसे च्युत नहीं होता। ऐसा होनेसे उसे शंकाकृत बंध नहीं होता, कर्म रस देकर खिर जाते हैं। अब निःकांक्षित गुणकी गाथा कहते हैं: जो कर्मफल अरु सर्व धर्मोंकी न कांक्षा धारता । चिन्मूर्ति वो कांक्षारहित सम्यक्त्वदृष्टि जानना ।। २३०।। गाथार्थ:- [ यः चेतयिता] जो चेतयिता [कर्मफलेषु ] कर्मोंके फलोंके प्रति [ तथा] तथा [ सर्वधर्मेषु ] सर्व धर्मों के प्रति [ कांक्षां] कांक्षा [ न तु करोति] नहीं करता [ सः] उसको [ निष्कांक्षः सम्यग्दृष्टि: ] निष्कांक्ष सम्यग्दृष्टि [ ज्ञातव्यः] जानना चाहिये। टीका:-क्योंकि सम्यग्दृष्टि, टंकोत्कीर्ण एक ज्ञायकभावमयता के कारण सभी कर्मफलों के प्रति तथा समस्त वस्तुधर्मों के प्रति कांक्षाका अभाव होनेसे, निष्कांक्ष (निर्वांछक) है, इसलिये उसे कांक्षाकृत बंध नहीं किन्तु निर्जरा ही है। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008303
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Spiritual
File Size3 MB
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