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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates निर्जरा अधिकार ३३७ (स्वागता) ज्ञानवान् स्वरसतोऽपि यतः स्यात् सर्वरागरसवर्जनशीलः। लिप्यते सकलकर्मभिरेष: कर्ममध्यपतितोऽपि ततो न।। १४९ ।। णाणी रागप्पजहो सव्वदव्वेसु कम्ममज्झगदो। णो लिप्पदि रजएण दु कद्दममज्झे जहा कणयं ।। २१८ ।। अण्णाणी पुण रत्तो सव्वदव्वेसु कम्ममज्झगदो। लिप्पदि कम्मरएण दु कद्दममज्झे जहा लोहं ।। २१९ ।। ज्ञानी रागप्रहायक: सर्वद्रव्येषु कर्ममध्यगतः। नो लिप्यते रजसा तु कर्दममध्ये यथा कनकम्।। २१८ ।। अज्ञानी पुना रक्तः सर्वद्रव्येषु कर्ममध्यगतः। लिप्यते कर्मरजसा तु कर्दममध्ये यथा लोहम्।। २१९ ।। अब पुनः कहते हैं कि: श्लोकार्थ:- [ यतः ] क्योंकि [ ज्ञानवान् ] ज्ञानी [ स्वरसतः अपि ] निजरससे ही [ सर्वरागरसवर्जनशीलः ] सर्व रागरसके त्यागरूप स्वभाववाला [ स्यात् ] है [ ततः ] इसलिये [एषः] वह [कर्ममध्यपतितः अपि] कर्मों के बीच पड़ा हुआ भी [ सकलकर्मभिः ] सर्व कर्मोसे [ न लिप्यते ] लिप्त नहीं होता। १४९। अब इसी अर्थका विवेचन गाथाओं द्वारा करते हैं: हो द्रव्य सबसे रागवर्जक , ज्ञानि कर्मों मध्यमें । पर कर्मरजसे लिप्त नहिं, ज्यों कनक कर्दममध्यमें ।। २१८ ।। परद्रव्य सबसे रागशील, अज्ञानि कर्मों मध्यमें । वह कर्मरजसे लिप्त हो, ज्यों लोह कर्दममध्यमें ।। २१९ ।। गाथार्थ:- [ज्ञानी] ज्ञानी [सर्वद्रव्येषु ] जो कि सर्व द्रव्योंके प्रति [ रागप्रहायकः ] रागको छोड़ने वाला है वह [कर्ममध्यगतः ] कर्मके मध्यमें रहा हुआ हो [ तु] तो भी [ रजसा ] कर्मरूपी रजसे [ नो लिप्यते ] लिप्त नहीं होता- [ यथा] जैसे [ कनकम् ] सोना [ कर्दममध्ये ] कीचड़के बीच पड़ा हुआ हो तो भी लिप्त नहीं होता। [ पुनः ] और [ अज्ञानी ] अज्ञानी [ सर्वद्रव्येषु ] जो कि सर्व द्रव्योंके प्रति [ रक्तः] रागी है वह [कर्ममध्यगतः ] कर्मोंके मध्य रहा हुआ [ कर्मरजसा ] कर्मरजसे Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008303
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Spiritual
File Size3 MB
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