________________
Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates
निर्जरा अधिकार
३३१
एवमादिकांस्तु विविधान् सर्वान भावांश्च नेच्छति ज्ञानी।
ज्ञायकभावो नियतो निरालम्बस्तु सर्वत्र।। २१४ ।। एवमादयोऽन्येऽपि बहप्रकाराः परद्रव्यस्य ये स्वभावास्तान सर्वानेव नेच्छति ज्ञानी, तेन ज्ञानिनः सर्वेषामपि परद्रव्यभावानां परिग्रहो नास्ति। इति सिद्धं ज्ञानिनोऽत्यन्तनिष्परिग्रहत्वम्।अथैवमयमशेषभावान्तरपरिग्रहशून्यत्वादुद्वान्तसमस्ताज्ञ नि: सर्वत्राप्यत्यन्तनिरालम्बो भूत्वा प्रतिनियतटङ्कोत्कीर्णंकज्ञायकभावः सन् साक्षाद्विज्ञानघनमात्मानमनुभवति।
( स्वागता) पूर्वबद्धनिजकर्मविपाकात् ज्ञानिनो यदि भवत्युपभोगः। तद्भवत्वथं च रागवियोगात् नूनमेति न परिग्रहभावम्।। १४६ ।।
गाथार्थ:- [ एवमादिकान् तु] इत्यादिक [ विविधान् ] अनेक प्रकारके [ सर्वान् भावान् च ] सर्व भावोंको [ ज्ञानी ] ज्ञानी [ न इच्छति ] नहीं चाहता; [ सर्वत्र निरालम्ब: तु] सर्वत्र ( सभीमें) निरालंब वह [ नियतः ज्ञायकभावः ] निश्चित ज्ञायकभाव ही है।
टीका:-इत्यादिक अन्य भी अनेक प्रकारके जो परद्रव्यके स्वभाव हैं उन सभी को ज्ञानी नहीं चाहता इसलिये ज्ञानीके समस्त परद्रव्यके भावोंका परिग्रह नहीं है। इसप्रकार ज्ञानीके अत्यंत निष्परिग्रहत्व सिद्ध हुआ।
अब इसप्रकार, समस्त अन्य भावोंके परिग्रहसे शून्यत्वके कारण जिसने समस्त अज्ञान का वमन कर डाला है ऐसा यह (ज्ञानी). सर्वत्र अत्यंत निरालंब होकर. नियत टंकोत्कीर्ण एक ज्ञायकभाव रहता हुआ, साक्षात् विज्ञानघन आत्माका अनुभव करता है।
भावार्थ:-पुण्य, पाप, अशन, पान इत्यादि समस्त अन्यभावोंका ज्ञानीको परिग्रह नहीं है क्योंकि समस्त परभावोंको हेय जाने तब उसकी प्राप्तिकी इच्छा नहीं
होती।
अब आगामी गाथाका सूचक काव्य कहते हैं:
श्लोकार्थ:- [ पूर्वबद्ध-निज-कर्म-विपाकात् ] पूर्वबद्ध अपने कर्मके विपाकके कारण [ ज्ञानिनः यदि उपभोगः भवति तत् भवतु] ज्ञानीके यदि उपभोग हो तो हो,
* पहले, मोक्षाभिलाषी सर्व परिग्रहको छोड़नेके लिये प्रवृत्त हुआ था, उसने इस गाथा तकमें समस्त परिग्रहभावको छोड़ दिया, और इसप्रकार समस्त अज्ञानको दूर कर दिया तथा ज्ञानस्वरूप आत्माका अनुभव किया।
Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com