________________
Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates
निर्जरा अधिकार
३०३
यदा वेद्यते तदा मिथ्यादृष्टे: रागादिभावानां सद्भावेन बन्धनिमित्तं भूत्वा निर्जीर्यमाणोऽप्यनिर्जीर्ण: सन् बन्ध एव स्यात्; सम्यग्दृष्टस्तु रागादिभावानामभावेन बन्धनिमित्तमभूत्वा केवलमेव निर्जीर्यमाणो निर्जीर्णः सन्निर्जरैव स्यात्।
(अनुष्टुभ् ) तज्ज्ञानस्यैव सामर्थ्य विरागस्यैव वा किल। यत्कोऽपि कर्मभिः कर्म भुञ्जानोऽपि न बध्यते।। १३४ ।।
अथ ज्ञानसामर्थ्य दर्शयति
जब इस (सुखरूप अथवा दुःखरूप) भावका वेदन होता है तब मिथ्यादृष्टिको, रागादिभावोंके सद्भावसे बंधका निमित्त होकर (वह भाव) निर्जरा को प्राप्त होता हुआ भी ( वास्तवमें) निर्जरित न होता हुआ, बंध ही होता है; किन्तु सम्यग्दृष्टिके, रागादिभावोंके अभावसे बंधका निमित्त हुए बिना केवलमात्र निर्जरित होनेसे ( वास्तवमें) निर्जरित होता हुआ , निर्जरा ही होती है।
भावार्थ:-परद्रव्य भोगनेमें आनेपर, कर्मोदयके निमित्तसे जीवके सुखरूप अथवा दुःखरूप भाव नियमसे उत्पन्न होता है। मिथ्यादृष्टिके रागादिके कारण वह भाव आगामी बंध करके निर्जरित होता है इसलिये उसे निर्जरित नहीं कहा जा सकता; अत: मिथ्यादृष्टिको परद्रव्यके भोगते हुए बंध ही होता है। सम्यग्दृष्टिके रागादिक न होनेसे आगामी बंध किये बिना ही वह भाव निर्जरित हो जाता है इसलिये उसे निर्जरित कहा जा सकता है; अतः सम्यग्दृष्टिके परद्रव्य भोगनेमें आनेपर निर्जरा ही होती है। इसप्रकार सम्यग्दृष्टिके भावनिर्जरा होती है।
अब आगामी गाथाओंकी सूचनाके रूपमें श्लोक कहते हैं :---
श्लोकार्थ:- [किल ] वास्तवमें [ तत् सामर्थ्य ] वह (आश्चर्यकारक ) सामर्थ्य [ ज्ञानस्य एव ] ज्ञानकी ही है [ वा ] अथवा [ विरागस्य एव ] विरागकी ही है [ यत् ] कि [ कः अपि] कोई ( सम्यग्दृष्टि जीव) [ कर्म भुञ्जानः अपि] कर्मोंको भोगता हुआ भी [कर्मभिः न बध्यते ] कर्मोंसे नहीं बँधाता! ( वह अज्ञानीको आश्चर्य उत्पन्न करती है और ज्ञानी उसे यथार्थ जानता है।) १३४ ।
अब ज्ञानका सामर्थ्य बतलाते हैं:
Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com