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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates कर्ता-कर्म अधिकार १९१ पुद्गलकर्मणः किल पुद्गलद्रव्यमेवैकं कर्तृ; तद्विशेषाः मिथ्यात्वाविरतिकषाययोगा बन्धस्य सामान्यहेतुतया चत्वारः कर्तारः। ते एव विकल्प्यमाना मिथ्यादृष्ट्य दिसयोगकेवल्यन्तास्त्रयोदश कर्तारः। अथैते पुद्गलकर्मविपाकविकल्पत्वादत्यन्तमचेतनाः सन्तस्त्रयोदश कर्तार: केवला एव यदि व्याप्यव्यापकभावेन किञ्चनापि पुद्गलकर्म कुर्युस्तदा कुर्युरेव; किं जीवस्यात्रापतितम् ? अथायं तर्क:-पुद्गलमयमिथ्यात्वादीन् वेदयमानो जीवः स्वयमेव मिथ्यादृष्टिभूत्वा पुद्गलकर्म करोति। स किलाविवेकः, यतो न खल्वात्मा भाव्यभावकभावाभावात् पुद्गलद्रव्यमयभिथ्यात्वादिवेदकोऽपि, कथं पुन: पुद्गलकर्मण: कर्ता नाम ? अथैतदायातम्-यत: पुद्गलद्रव्यमयानां चतुर्णा सामान्यप्रत्ययानां विकल्पास्त्रयोदश विशेषप्रत्यया गुणशब्दवाच्याः केवला एव कुर्वन्ति कर्माणि, ततः पुद्गलकर्मणामकर्ता जीवो, गुणा एव तत्कर्तारः। ते तु पुद्गलद्रव्यमेव। ततः स्थितं पुद्गलकर्मण: पुद्गलद्रव्यमेवैकं कर्तृ। टीका:-वास्तवमें पुदगलकर्मका, पुद्गलद्रव्य ही एक कर्ता है; उसके विशेषमिथ्यात्व, अविरति, कषाय और योग बंधके सामान्य हेतु होनेसे चार कर्ता हैं; उनहीं के भेद करनेपर मिथ्यादृष्टिसे लेकर सयोगकेवली पर्यंत तेरह कर्ता हैं। अब, जो पुद्गलकर्मके विपाकके प्रकार होनेसे अत्यंत अचेतन हैं ऐसे यह तेरह कर्ता ही मात्र व्याप्यव्यापकभावसे यदि कुछ भी पुद्गलकर्म को करें तो भले करें; इसमें जीव का क्या आया ? ( कुछ भी नहीं।) यहाँ यह तर्क है कि “पुद्गलमय मिथ्यात्वादिको भोगता हुआ, जीव स्वयं ही मिथ्यादृष्टि होकर पुद्गलकर्मको करता है। (इसका समाधान यह कि :-) यह तर्क वास्तव में अविवेक है, क्योंकि भाव्यभावकभावका अभाव होनेसे आत्मा निश्चयसे पुद्गलद्रव्यमय मिथ्यात्वादिका भोक्ता भी नहीं है, तब फिर पुद्गलकर्मका कर्ता कैसे हो सकता है ? इसलिये यह सिद्ध हुआ कि-जो पुद्गलद्रव्यमय चार सामान्यप्रत्ययों के भेदरूप तेरह विशेषप्रत्यय हैं जो कि 'गुण' शब्दसे (गुणस्थान नामसे) कहे जाते हैं वही केवल मात्र कर्मोको करते हैं, इसलिये जीव पुद्गलकर्मोंका अकर्ता है, किन्तु 'गुण' ही उनके कर्ता हैं; और वे 'गुण' तो पुद्गलद्रव्य ही हैं; इससे यह सिद्ध हुआ कि पुद्गलकर्मका पुद्गलद्रव्य ही एक कर्ता है। भावार्थ:-शास्त्रमें प्रत्ययोंके बंधका कर्ता कहा गया है। गुणस्थान भी विशेष प्रत्यय ही हैं इसलिये ये गुणस्थान बंधके कर्ता हैं अर्थात् पुद्गलकर्मके कर्ता हैं। और मिथ्यात्वादि सामान्य प्रत्यय या गुणस्थानरूप विशेष प्रत्यय अचेतन पुद्गलद्रव्यमय ही हैं, इससे यह सिद्ध हुआ कि पुद्गलद्रव्य ही पुद्गलकर्मका कर्ता है; जीव नहीं। जीवको पुद्गलकर्मका कर्ता मानना अज्ञान है। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008303
Book TitleSamaysara
Original Sutra AuthorKundkundacharya
AuthorParmeshthidas Jain
PublisherDigambar Jain Swadhyay Mandir Trust
Publication Year
Total Pages664
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Spiritual
File Size3 MB
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