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समयसार
१७८
जदि सो परदव्वाणि य करेज्ज णियमेण तम्मओ होज्ज। जम्हा ण तम्मओ तेण सो ण तेसिं हवदि कत्ता।। ९९ ।। यदि स परद्रव्याणि च कुर्यान्नियमेन तन्मयो भवेत्।
यस्मान्न तन्मयस्तेन स न तेषां भवति कर्ता।। ९९ ।।
यदि खल्वयमात्मा परद्रव्यात्मकं कर्म कुर्यात् तदा परिणामपरिणामिभावान्यथा नुपपत्तेर्नियमेन तन्मयः स्यात; न च द्रव्यान्तरमयत्वे द्रव्योच्छेदापत्तेस्तन्मयोऽस्ति। ततो व्याप्यव्यापकभावेन न तस्य कर्तास्ति।
निमित्तनैमित्तिकभावेनापि न कर्तास्ति
परद्रव्यको जीव जो करे, तो जरूर वो तन्मय बने ।
पर वो नहीं तन्मय हुआ, इससे न कर्ता जीव है ।। ९९।।
गाथार्थ:- [ यदि च ] यदि [ सः ] आत्मा [ परद्रव्याणि ] परद्रव्योंको [ कुर्यात् ] करे तो वह [ नियमेन ] नियमसे [ तन्मयः ] तन्मय अर्थात् परद्रव्यमय [ भवेत् ] हो जाये; [ यस्मात् न तन्मयः ] किन्तु तन्मय नहीं है [ तेन] इसलिये [ सः ] वह [ तेषां] उनका [ कर्ता ] कर्ता [ न भवति ] नहीं है।
टीका:-यदि निश्चयसे यह आत्मा परद्रव्यस्वरूप कर्मको करे तो, अन्य किसी प्रकार से परिणाम-परिणामीभाव न बन सकनेसे, वह (आत्मा) नियमसे तन्मय (परद्रव्यमय) हो जाये; परंतु वह तन्मय नहीं है, क्योंकि कोई द्रव्य अन्यद्रव्यमय हो जाये, तो उस द्रव्यके नाश की आपत्ति ( दोष) आ जायेगा। इसलिये आत्मा व्याप्यव्यापकभावसे परद्रव्यस्वरूप कर्मका कर्ता नहीं है।
भावार्थ:- यदि एक द्रव्यका कर्ता अन्य द्रव्य हो तो दोनों द्रव्य एक हो जायें, क्योंकि कर्ताकर्मभाव अथवा परिणाम-परिणामीभाव एक द्रव्यमें ही हो सकता है। इसी प्रकार यदि एक द्रव्य दूसरे द्रव्यरूप हो जाये, तो उस द्रव्यका ही नाश हो जाये वह बड़ा दोष आ जायेगा। इसलिये एक द्रव्यको दूसरे द्रव्यका कर्ता कहना उचित नहीं
अब कहते हैं कि आत्मा (व्याप्यव्यापकभावसे ही नहीं किन्तु) निमित्तनैमित्तिकभावसे भी कर्ता नहीं है:
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