________________
Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates
समयसार
१४४
नापि परिणमति न गृह्णात्युत्पद्यते न परद्रव्यपर्याये। ज्ञानी जानन्नपि खलु स्वकपरिणाममनेकविधम्।। ७७ ।।
यतो यं प्राप्यं विकार्यं निर्वर्यं च व्याप्यलक्षणमात्मपरिणामं कर्म आत्मना स्वयमन्तापकेन भूत्वादिमध्यान्तेषु व्याप्य तं गृह्णता तथा परिणमता तथोत्पद्यमानेन च क्रियमाणं जानन्नपि हि ज्ञानी स्वयमन्तर्व्यापको भूत्वा बहिःस्थस्य परद्रव्यस्य परिणामं मृत्तिकाकलशमिवादिमध्यान्तेषु व्याप्य न तं गृह्णाति न तथा परिणमति न तथोत्पद्यते च, ततः प्राप्यं विकार्य निर्वयं च व्याप्यलक्षणं परद्रव्यपरिणाम कर्माकुर्वाणस्य स्वपरिणामं जानतोऽपि ज्ञानिनः पुद्गलेन सह कर्तृकर्मभावः।
पुद्गलकर्मफलं जानतो जीवस्य सह पुद्गलेन कर्तृकर्मभावः किं भवति किं न भवतीति चेत्
गाथार्थ:- [ ज्ञानी] ज्ञानी [अनेकविधम् ] अनेक प्रकारके [ स्वकपरिणामम् ] अपने परिणामको [ जानन् अपि] जानता हुआ भी [ खलु ] निश्चयसे [ परद्रव्यपर्याये] परद्रव्यकी पर्यायमें [न अपि परिणमति ] परिणमित नहीं होता, [न गृहाति] उसे ग्रहण नहीं करता और [ न उत्पद्यते ] उस-रूप उत्पन्न नहीं होता।
टीका:-प्राप्य, विकार्य और निर्वर्त्य ऐसा, व्याप्यलक्षणवाला आत्माका परिणामस्वरूप जो कर्म (कर्ताका कार्य), उसमें आत्मा स्वयं अंतर्व्यापक होकर, आदि-मध्य-अंतमें व्याप्त होकर, उसे ग्रहण करता हुआ, उस-रूप परिणमन करता हआ और उस-रूप उत्पन्न होता हआ. उस आत्मपरिणामको करता है। इसप्रकार आत्मा के द्वारा किये जाने वाले आत्मपरिणामको ज्ञानी जानता हआ भी. जैसे मिट्टी स्वयं ही घडेमें अंतर्व्यापक होकर, आदि-मध्य-अंतमें व्याप्त होकर, घडेको ग्रहण करती है, घड़े के रूप में परिणमित होती है और घड़ेके रूपमें उत्पन्न होती है उसीप्रकार, ज्ञानी स्वयं बाह्यस्थित ऐसे परद्रव्यके परिणाममें अंतर्व्यापक होकर, आदिमध्य-अंतमें व्याप्त होकर, उसे ग्रहण नहीं करता, उस-रूप परिणमित नहीं होता
और उस-रूप उत्पन्न नहीं होता। इसलिये, यद्यपि ज्ञानी अपने परिणामको जानता है तथापि, प्राप्य, विकार्य और निर्वर्त्य ऐसा जो व्याप्यलक्षणवाला परद्रव्यपरिणामस्वरूप कर्म है, उसे न करनेवाले ऐसे उस ज्ञानीका पुद्गलके साथ कर्ताकर्मभाव नहीं है।
भावार्थ:-जैसे ७६वीं गाथामें कहा है तद्अनुसार यहाँ भी जान लेना। वहाँ 'पुद्गलकर्मको जानता हुआ ज्ञानी' ऐसा कहा था उसके स्थान पर यहाँ ‘अपने परिणामको जानता हुआ ज्ञानी' ऐसा कहा है---इतना अंतर है।
अब प्रश्न करता है कि पुद्गलकर्मके फलको जाननेवाले ऐसे जीवका पुद्गलके साथ कर्ताकर्मभाव है या नहीं ? उसका उत्तर कहते हैं:---
Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com