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समयसार
१७
शास्त्र आनन्दमय विज्ञानघन आत्मा को प्रत्यक्ष देखने वाला अद्वितीय जगत्चक्षु है। जो कोई उसके परम गम्भीर और सूक्ष्म भावोंको हृदयङ्गत करेगा उसको यह जगत्चक्षु आत्मा का प्रत्यक्ष दर्शन करावेगा, जबतक वे भाव यथार्थ प्रकार से हृदयङ्गत नहीं होवें तबतक रात दिन वह ही मंथन, वह ही पुरुषार्थ कर्तव्य है।' श्री
जयसेनाचार्यदेव के शब्दोंमें समयसारके अभ्यास आदिका फल कहकर यह उपोद्घात पूर्ण करता हूँ :
‘स्वरूपरसिक पुरुषों द्वारा वर्णित इस प्राभृतका जो कोई आदर से अभ्यास करेगा, श्रवण करेगा, पठन करेगा, प्रसिद्धि करेगा, वह पुरुष अविनाशी स्वरूपमय, अनेक प्रकारकी विभिन्नता वाले, केवल एक ज्ञानात्मक भावको प्राप्त करके अग्रपद की मुक्ति ललना में लीन होगा।'
हिम्मतलाल
दीपोत्सव व सं० १९९६ जेठालाल शाह
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