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समयसार
११६
यस्य तु संसारावस्थायां जीवस्य वर्णादितादात्म्यमस्तीत्यभिनिवेशस्तस्य तदानीं स जीवो रूपित्वमवश्यमवाप्नोति। रूपित्वं च शेषद्रव्यासाधारणं कस्यचिट्टव्यस्य लक्षणमस्ति। ततो रूपित्वेन लक्ष्यमाणं यत्किञ्चिद्भवति स जीवो भवति। रूपित्वेन लक्ष्यमाणं पुद्गलद्रव्यमेव भवति। एवं पुद्गलद्रव्यमेव स्वयं जीवो भवति, न पुनरितरः कतरोऽपि। तथा च सति, मोक्षावस्थायामपि नित्यस्वलक्षणलक्षितस्य द्रव्यस्य सर्वास्वप्यवस्थास्वनपायित्वादनादिनिधनत्वेन पुद्गलद्रव्यमेव स्वयं जीवो भवति, न पुनरितरः कतरोऽपि। तथा च सति, तस्यापि पुद्गलेभ्यो भिन्नस्य जीवद्रव्यस्याभावाद्भवत्येव जीवाभावः।
एवमेतत् स्थितं यद्वर्णादयो भावा न जीव इति
टीका:-फिर, जिसका यह अभिप्राय है कि--संसार-अवस्थामें जीवका वर्णादिभावोंके साथ तादात्म्यसंबंध है, उसके मतमें संसार-अवस्था के समय वह जीव अवश्य रूपित्वको प्राप्त होता है; और रूपित्व तो किसी द्रव्यका, शेष द्रव्योंसे असाधारण ऐसा लक्षण है। इसलिये रूपित्व (लक्षण) से लक्षित (लक्ष्यरूप होता हुआ) जो कुछ हो वही जीव है। रूपित्वसे लक्षित तो पुद्गलद्रव्य ही है। इसप्रकार पुद्गलद्रव्य ही स्वयं जीव है, किन्तु उसके अतिरिक्त दूसरा कोई जीव नहीं है। ऐसा होने पर, मोक्ष-अवस्थामें भी पुद्गलद्रव्य ही स्वयं जीव (सिद्ध) है, किन्तु उसके अतिरिक्त अन्य कोई जीव (सिद्ध होता) नहीं; क्योंकि सदा अपने स्वलक्षणसे लक्षित ऐसा द्रव्य सभी अवस्थाओंमें हानि अथवा ह्रासको न प्राप्त होनेसे अनादि-अनंत होता है। ऐसा होनेसे , उसके मत में भी ( अर्थात् संसार-अवस्थामें ही जीवका वर्णादिके साथ तादात्म्य माननेवालेके मतमें भी); पुद्गलोंसे भिन्न ऐसा कोई जीवद्रव्य न रहने से, जीवका अवश्य अभाव होता है।
भावार्थ:-यदि ऐसा माना जाये कि संसार-अवस्थामें जीवका वर्णादिके साथ तादात्म्यसंबंध है तो जीव मूर्तिक हुआ; और मूर्तिकत्व तो पुद्गलद्रव्यका लक्षण है; इसलिये पुद्गलद्रव्य ही जीवद्रव्य सिद्ध हुआ, उसके अतिरिक्त कोई चैतन्यरूप जीवद्रव्य नहीं रहा। और मोक्ष होनेपर भी उन पुद्गलोंका ही मोक्ष हुआ; इसलिये मोक्षमें भी पुद्गल ही जीव ठहरे, अन्य कोई चैतन्यरूप जीव नहीं रहा। इसप्रकार संसार तथा मोक्षमें पुद्गलसे भिन्न ऐसा कोई चैतन्यरूप जीवद्रव्य न रहनेसे जीवका ही अभाव हो गया। इसलिये मात्र संसार-अवस्थामें ही वर्णादिभाव जीवके हैं ऐसा माननेसे भी जीवका अभाव ही होता है।
इसप्रकार यह सिद्ध हुआ कि वर्णादिक भाव जीव नहीं हैं, यह अब कहते
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