________________
Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates जीव- अजीव अधिकार
संसारावस्थायामेव जीवस्य वर्णादितादात्म्यमित्यभिनिवेशेऽप्ययमेव दोष:अह संसारत्थाणं जीवाणं तुज्झ होंति वण्णादी । तम्हा संसारत्था जीवा रूवित्तमावण्णा ।। ६३ ।। एवं पोग्गलदव्वं जीवो तहलक्खणेण मूढमदी । णिव्वाणमुवगदो वि य जीवत्तं गोग्गलो पत्तो ।। ६४ ।।
अथ संसारस्थानां जीवानां तव भवन्ति वर्णादयः । तस्मात्संसारस्था जीवा रूपित्वमापन्नाः ।। ६३ ।। एवं पुद्गलद्रव्यं जीवस्तथालक्षणेन मूढमते। निर्वाणमुपगतोऽपि च जीवत्वं पुद्गलः प्राप्तः ।। ६४ ।।
भावार्थ:-जैसे वर्णादिक भाव पुद्गलद्रव्यके साथ तादात्म्यस्वरूप हैं उसी प्रकार जीवके साथ तादात्म्यस्वरूप हों तो जीव - पुद्गलमें कोई भी भेद न रहे और ऐसा होने से जीवका ही अभाव हो जाये यह महादोष आता है।
१९५
अब, ‘मात्र संसार - अवस्थामें ही जीवका वर्णादिके साथ तादात्म्य है' इस अभिप्रायमें भी यही दोष आता है सो कहते हैं:
वर्णादि हैं संसारी जीवके, योहिं मत तुझ होय जो । संसार स्थित सब जीवगण, पाये तदा रूपित्वको ।। ६३ ।। इस रीत पुद्गल वो ही जीव, हे मूढ़मति ! समचिह्नसे। अरु मोक्षप्राप्त हुआ भि पुद्गलद्रव्य जीव बने अरे ! ।। ६४ ।।
गाथार्थ:- [ अथ ] अथवा यदि [ तव ] तुम्हारा मत यह हो कि --
[ संसारस्थानां जीवानां ] संसारमें स्थित जीवोंके ही [ वर्णादयः] वर्णादिक ( तादात्म्यस्वरूपसे ) [ भवन्ति ] हैं, [ तस्मात् ] तो इस कारणसे [ संसारस्था: जीवाः ] संसारमें स्थित जीव [ रूपित्वम् आपन्नाः] रूपित्वको प्राप्त हुये; [ एवं ] ऐसा होने से, [तथालक्षणेन] वैसा लक्षण ( अर्थात् रूपित्व लक्षण ) तो पुद्गलद्रव्यका होनेसे, [ मूढमते] हे मूढबुद्धि ! [ पुद्गलद्रव्यं ] पुद्गलद्रव्य ही [ जीवः ] जीव कहलाया [च] और (मात्र संसारअवस्थामें ही नहीं किन्तु ) [ निर्वाणम् उपगतः अपि ] निर्वाण प्राप्त होनेपर भी [ पुद्गलः ] पुद्गल ही [ जीवत्वं ] जीवत्वको [ प्राप्तः ] प्राप्त हुआ !
Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com