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Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates श्री रत्नकरण्ड श्रावकाचार
भगवान आदिनाथ के छह महीने भोजन का अंतराय रहा, तब किसी देव ने आकर किसी को आहार देने की विधि क्यों नहीं बताई ? पहले तो गर्भ में आने के ६ माह पहले ही इन्द्रादि अनेक देव भगवान की सेवा में रहते थे तथा स्वर्ग लोक से आहार, वस्त्र, वाहनादि लाने को सावधान होकर उपस्थित रहते थे; वे सब देव कैसे भूल गये ? भरतादि १०० पुत्रों को तथा ब्राह्मी–सुन्दरी पुत्रियों को मुनि - श्रावक का सब धर्म पढ़ाया था, उन्होने भी विचार नहीं किया कि भगवान भी अब मुनि होकर आहार के लिये चर्या कर रहे हैं। वास्तव में अंतराय कर्म का उदय मंद हुए बिना कौन सहायता करता है ?
युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव ये महावीतरागी मुनि होकर वन में ध्यान करते थे, उनको दुष्ट बैरी ने आकर अग्नि में लाल करके लोहे के आभूषण पहिनाये और उनका चाम, मांसादि भस्म हो गया तो भी किसी देव ने सहायता नहीं की।
सुकुमाल महामुनि को तीन दिन तक स्यालिनी अपने दो बच्चों सहित भक्षण करती रही, वहां कोई देव सहायता करने नहीं आया। उनकी माता जिसको बहुत स्नेह था वह शोक में रोने-धोने में ही लगी रही, पुत्र कहां चला गया है, कोई खोज-खबर ही नहीं मंगाई ?
पांच सौ मुनियों को घानी में पेल दिया गया वहां किसी देव ने सहायता नहीं ही। पद्म ( राम बलभद्र और कृष्ण नारायण जिनकी पहले हजारों देव सेवा करते थे, जब हीन कर्म का उदय आया और पुण्य क्षीण हुआ तो कोई पानी पिलानेवाला एक मनुष्य या देव भी पास में नहीं रहा। जो सुदर्शनचक्र से नहीं मरा वह एक भील के बाण से प्राण रहित हो गया। ऐसे अनेक ध्यानी, तपस्वी, व्रती, संयमी आदि ने घोर उपसर्ग भोगे; उनमें से बहुतों के देव सहायी नहीं हुए और बहुतों के देव सहायी हुए हैं।
इसलिये यह निश्चित है कि • अशुभ कर्म का उपशम हुए बिना तथा शुभ कर्म का उदय आये बिना कोई देवादि सहायी नहीं होते हैं। स्वयं का शरीर ही शत्रु हो जाता है। खरदूषण का पुत्र शंबुकुमार जिसने बारह वर्ष तक बांस के झुरमुट में कठिन तपस्या करके सूर्यहास नाम की तलवार प्राप्त की थी, सहज ही लक्ष्मण के हाथ आ गई और उसी तलवार से शंबुकुमार का मस्तक कट गया। लक्ष्मण ने तो बिना जाने ही तलवार की धार का प्रयोग अभ्यासरूप में किया था, किन्तु भीतर बीहड़ में बैठे शंबकुमार का सिर कट गया। अपने हित के लिये सिद्ध की गई विद्या ने अपना ही घात करा दिया। पूर्व कर्म के उदय के निमित्त से ही अनेक उपकार-अपकार होते हैं। कोई देवादि पूजा करने से धन, आजीविका, स्त्री, पुत्रादि देने में समर्थ नहीं है ।
यहाँ प्रत्यक्ष ही देखते हैं - नगर का राजा सभी देव-देवी, पीर पैगम्बर, स्वामी, फकीर, सभी मतों के साधु, सभी वेद-पुराणों के पाठ करनेवाले, नित्य ही होम - यज्ञ का पाठ करनेवाले ब्राह्मणों को बहुत आजीविका देता है, बड़ा सत्कार करता है, लाखों रुपयों का दान देता है जिसका बड़ा फल सब तक पहुँचता है, तो भी संयोग-वियोग, हानि - वृद्धि, जीत-हार टालने में कोई भी समर्थ
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