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Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates प्रथम सम्यग्दर्शन अधिकार
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जाता है। यदि नदी के जल में स्नान करने से ही शरीर शुद्ध हो जाता तो करोड़ों मछली, मगर, कछुआ, कीर, धीवरादि शुद्ध हो जाते। अतः यह लोकमूढ़ता त्यागने योग्य ही है।
स्नान की आवश्यकता अब यहाँ इतना विशेष और जानना :- स्नान करने से शरीर पवित्र नहीं होता और धर्म भी नहीं होता है, परन्तु गृहस्थ दशा में मुनिराज के समान स्नान का त्याग कर देना उचित नहीं है। यदि पापी-म्लेच्छादि जीवों का स्पर्श हो जाय और स्नान नहीं करे तो अपने मन में पाप के प्रति ग्लानि नहीं रहेगी तथा उनकी संगति, स्पर्श, खान-पान चाहे-जैसा करने लग जायेगा तो व्यवहार धर्म का लोप जो जायेगा। इसलिए जैनियों का जो आचरण है वह व्यवहार का विरोधी नहीं है। अत्यन्त पाप से आजीविका करने वाले चांडाल , कसाई, चमार, शिकारी, भील, धीवरादि अति पापिष्ठ तथा म्लेच्छ-मुसलमानों की अपने शरीर के ऊपर छाया पड़ने से ही जब अति मलिनता मानते हैं तो इनका स्पर्श होने से स्नान कैसे नहीं करें ? स्नान तो करें ही करें, परमात्मा का स्मरण भी करते हैं।
इनके पास बैठने से बुद्धि मलिन हो जाती है। ये मुसलमान वगैरह वेश्यादि से कान लगाकर, मुंह के सामने मुंह करके बातचीत करते हैं, उनकी बुद्धि उत्तम धर्मादि के कार्यों से विमुख होकर उल्टी ही चलती है। जीवों के घातक कुत्ता, बिल्ली आदि पशु, कौआ आदि पक्षी, दुष्ट तिर्यंच भोजन के स्थान में आ जायें या भोजन को स्पर्श कर लें तो वह भोजन त्याग देना ही उचित है। इनका स्पर्श हो जाने पर बिना स्नान किये भोजन, स्वाध्यायादि करने में हीनाचारीपना होता है, पाप से डर नहीं रहता है, कुल का भेद नहीं रहता है। स्त्री संगम में अनेक जीवों की हिंसा, अपवित्र अंगों का मिलना, रक्त वीर्यादि का स्पर्श तथा महानिंद्य राग की उत्पत्ति होती है। इसका त्याग नहीं बन सके तो इस पाप की ग्लानि करके अपने को अशुद्ध मानकर स्नान करना चाहिये क्योंकि निंद्यकर्म करने के पश्चात् बाह्य शुद्धि के लिये स्नान
नान किये बिना पुस्तक, जिनमंदिर के उपकरण, आदि उत्तम वस्तु का स्पर्श कैसे करें?
यद्यपि शरीर में रक्त, मांस, हाड़, चाम, केश, मल मूत्र भरा है; परन्तु रक्त, पीव, चाम, हाड़, मांस, मल, मूत्र आदि का बाह्य स्पर्श हो जाने पर अवश्य धो डालना ही उचित है; क्योंकि केश, चाम आदि शरीर से अलग होने के पश्चात स्पर्श करने योग्य नहीं हैं। इनका हाथ आदि से स्पर्श हो जाने पर शीघ्र ही हाथ धोना उचित है। इनकी ग्लानि नहीं करे तो नीच, चमार, चाण्डाल, कसाई आदि से एकता होने से आचरण का भेद नहीं रहेगा, तब समस्त जाति संबंधी व्यवहार का लोप हो जाने से उत्तम कल का और नीच कल का आचार समान हो जायेगा तथा व्यवहार-आचार के बिगड़ जाने से महापाप का बंध होता है।
परमार्थ शौच तो व्यवहार शौच से ही होती है। जिसके भोजन में, पानी में, स्पर्श में, प्रवृत्ति में मलिनता हो जाती है तो उसका परमार्थ धर्म भी मलिन हो जाता है। जिनधर्मी तो चांडाल, भील, म्लेच्छ, मुसलमानादि के शरीर की छाया पड़ने से भी मलिनता मानते हैं। धोबी, कलाल, लुहार, खाती, सुनार, भड़भूजा आदि हिंसा कार्य करनेवाले हैं इसलिये इनका स्पर्श दूर से ही छोड़ना चाहिये।
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