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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates प्रथम सम्यग्दर्शन अधिकार [१३ हैं और उसी पंचभत्री को सती भी कहते हैं ? यदि कोई इनसे पूछता है कि - तुम सती कहते हो तो पंचभर्तारी नहीं कहो, और पंचभत्री कहते हो तो सती नहीं कहो। उसको ये उत्तर देते है - जैसे कोई राजा यदि १०० स्त्री ग्रहण करने का नियम ले लेवे तो उसके शीलवानपना ही है; उसी प्रकार यदि कोई स्त्री भी पुरुषों को ग्रहण करने की संख्या का नियम ले लेवे , उस नियम से अधिक पुरुषों को ग्रहण नहीं करे तो उसके शीलवानपना ही है ? देवों के और मनुष्यनी के आपस में कामभोग का सेवन करना कहते हैं ? विचारक देखो वैक्रियिक देहधारी के और सप्त धातुमय मलिन देहधारी के संगम कभी हो ही नहीं सकता है। किसी साधु का उपवास व्रत होवे तथा दूसरे साधु के पास आहार अधिक एकत्र हो जाये तो यदि गुरु की आज्ञा से उपवासी साधु आहार भक्षण कर लेता है तो भी व्रतभंग नहीं होता है ? उपवास में औषधि भक्षण कर ले तो भी दोष नहीं लगता है ? समोशरण में भगवान नग्न बैठे रहते हैं किन्तु वस्त्र सहित दिखाई देते है ? कहते हैंसाधु-यति को लाठी, पात्र, वस्त्र आदि १४ उपकरण रखना ही धर्म है ? चांडालादि को भी मुक्ति होना कहते हैं ? ____ महावीर जिनन्द्र के समोशरण में चन्द्रमा, सूर्य विमान सहित आये कहते हैं ? इसमें तो शाश्वती गति की मर्यादा का भंग होना कहलाया। यदि साधु का मन विचलित हो जाय तो श्रावक अपनी स्त्री को साधु को देकर उसकी कामवेदना मिटाकर उसका मन स्थिर कर देवे ? गंगादेवी से भरतचक्रवर्ती ने पचपन हजार वर्ष तक कामभोग किया कहते हैं ? कहते हैं कि – भोगभूमि के युगलों को मल-मूत्र होता है ? यदि कोई युगल मर जाता है तो तीन कोस के मुरदे के शरीर को देवता उठाकर भैरूण्ड आदि पक्षियों को खिला देते हैं ? यादव आदि सभी क्षत्रियों को मांसभक्षी कहते हैं ? ___ गौतम गणधर आनंद नामक श्रावक के घर उसके शरीर की कुशल पूछने गये और वहाँ झूठ बोला ? क्या गणधर भी चूककर झूठ बोलते हैं ? जन्म के समय वीरजिन ने मेरू पर्वत को कम्पायमान कर दिया कहते हैं ? चमड़े में रखा जल, घी आदि निर्दोष कहते हैं। इत्यादि हजारों अनर्थरूप कथन करके कल्पितसूत्र बनाये हैं, उनका विशेष कथन कहाँ तक लिखें ? मूर्ति पूजा के विषय में विचार इन्हीं श्वेताम्बरों में एक महाभ्रष्ट ढूंढियामती भी हुए हैं, वे प्रतिमा के वंदन करने का निषेध करते हैं और भोले लोगों से कहते हैं - ये प्रतिमा तो एकेन्द्रिय पाषाण की है, तुम पंचेन्द्रिय होकर उसके सामने क्यों नाचते हो ? क्यों वंदन करते हो ? वह प्रतिमा तुम्हें किस प्रकार शुभगति दे देगी ? अतः – ढूंढिया साधुओं की वंदना दर्शन करो ? Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008300
Book TitleRatnakarandak Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorMannulal Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year2000
Total Pages527
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, & Religion
File Size6 MB
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