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Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates प्रथम सम्यग्दर्शन अधिकार
बुभुक्षा है। इच्छा है सो वह मोहनीयकर्म का कार्य है। जिनका मोहनीयकर्म नष्ट हो चुका है ऐसे केवली भगवान के भोजन करने की इच्छा किस कारण से उत्पन्न होगी?
यदि तुम ऐसा मानते हो (९) – मोहनीय कर्म के बिना भी इच्छा उत्पन्न होती है ? तो तुमसे कहते हैं – केवली के मनोहर स्त्री को भोगने की इच्छा भी उत्पन्न होने का प्रसंग आ जायेगा, तथा सुन्दर शय्या में शयन, आभरण, वस्त्र आदि भोगोपभोग की इच्छा का भी प्रसंग आ जायेगा। तब वीतरागता का अभाव हो जायेगा, क्योंकि जहां इच्छा हो वहां वीतरागता नहीं होती है।
तुम्हारे मत में केवली आहार करते हैं ? सो पूछते हैं – एक दिन में एक बार करते हैं या अनेकबार करते हैं, या एक दिन के अंतर से या दो दिन, पांच दिन, पक्ष, मास , आदि कितने अंतर से भोजन करते हैं ? जितना अंतर तुम कहोगे उतने प्रमाण ही शक्ति कहलाई, शक्ति घटने पर भोजन करते हैं। भोजन के आश्रय बल रहा, तो भगवान केवली के अनंतवीर्य कहना असत्य हुआ। केवली का बल आहार के आधीन ही रहा ?
यदि तुम यह कहोगे (१०) – केवली भूख को शांत करने के लिये भोजन का आस्वादन करते हैं ? तो हम पूछते हैं - वह केवलज्ञान द्वारा भोजन का स्वाद लेते हैं या रसना इंद्रिय द्वारा स्वाद लेते हैं ।
यदि केवलज्ञान द्वारा स्वाद लेते हैं तो दूर क्षेत्र में रखे हुए भोजन का स्वाद ले लें, तब कवलाहार करने का क्या प्रयोजन रहा ? यदि रसना इंद्रिय से स्वाद लेते हैं तो मतिज्ञान होने का प्रसंग आ जायेगा, क्योंकि इंद्रियों द्वारा देखना, स्वाद लेना, श्रवण करना, स्पर्श करना, चिंतवन करना, यह तो मतिज्ञान के कार्य हैं।
यदि तुम यह कहोगे (११) – सर्वज्ञपना के और कवलाहार के विरोध नहीं है। जैसे - यहां आहार करते हुए मनुष्यों में ज्ञान की हीनता नहीं दिखाई देती है वैसे ही भोजन करते हुए भी केवलज्ञान की हीनता नहीं होती है। __उससे हम पूछते हैं - फिर तो द्रव्य , आभरण , वस्त्र, वाहन, काम , विषय आदि भोगने में भी सर्वज्ञपना का विरोध नहीं रहेगा?
यदि तुम यह कहोगे (१२) - सर्वज्ञ के मोह के उदय का अभाव है अतः द्रव्य, आभरण, काम, विषय, भोगादि ग्रहण करने की इच्छा नहीं है। असातावेदनीय का उदय विद्यमान है इसलिये आहार ग्रहण करते हैं क्योकि भिन्न-भिन्न कर्मों की शक्ति भिन्न-भिन्न है। कर्मों की शक्ति यदि एक समान हो तो कर्मों में भिन्न-भिन्न होने का भेद नहीं रहेगा। केवली के मोह के उदय का अभाव हुआ है इसलिये द्रव्यादिक ग्रहण नहीं करते हैं ?
उससे कहते हैं - यदि मोह का अभाव हो गया है तो ग्रास उठाकर मुख में रखना, चबाना, निगलना आदि की इच्छा किस कारण हुई ?
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