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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates सप्तम- सम्यग्दर्शन अधिकार है। वेदना से इतना भय क्यों करते हो? वेदना से मरण ही तो होगा। मरण तो एक बार अवश्य होना ही है, जिसने भी देह धारण की है, वह अवश्य मरण करेगा ही। वीतर राग गरुओं द्वारा उपदेशित व्रत-संयम सहित. कायरता रहित. उत्साह से. चार आराधनाओं की शरण सहित यदि मरण हो जाय तो इसके समान तीनलोक में लाभ नहीं है। तीनलोक की राज्य संपदा तो विनाशीक है, पराधीन है; किन्तु आराधना की संपदा अनन्त सुख देनेवाली है, अविनाशी है। जिस भयरहित-धीरतासहित मरण को मुनीश्वर-आचार्य-उपाध्याय चाहते हैं, सभी व्रती, संयमी, सम्यग्दष्टि चाहते हैं तथा तुम भी निरन्तर चाहते रहते थे, वह मनोवांछित समाधिमरण निकट आ गया है, इसके समान आनन्द देनेवाला कोई दूसरा है ही नहीं। जो यह वेदना बढ़ती है वह तुम्हारा बड़ा उपकार ही करती है। वेदना से देह में राग नष्ट हो जायेगा; पूर्व में जो असाता आदि कर्म बांधे थे उनकी अल्पकाल में ही निर्जरा हो जायेगी, दुःख-रोगों से भरे देहरुप बन्दीगृह से अवश्य छुटकारा हो जायेगा, विषय भोगों से विरक्ति हो जायेगी, पर द्रव्यों से ममता घट जायेगी, मरण का भय नहीं रहेगा; मित्र, पुत्र, स्त्री बांधव आदि से ममता नष्ट हो जायगी इत्यादि अनेक-अनेक उपकार वेदना से होते जाने। यदि कायर हो गये तो वेदना बढ़ेगी, संक्लेश बढ़ेगा, कर्म का उदय आया है वह अब टलेगा नहीं। इसलिये अब दृढ़ता ही धारण करने का समय है। शूरपना धारण करके ही कर्म को जीत पावोगे। यदि कायर होकर रोवोगे, घबराओगे तो कर्म तुम्हें मारकर तिर्यचादि कुगति प्राप्त करा देगा जहाँ पर अनेक दुःख प्राप्त करोगे। जिस प्रकार कुल का, साधर्मियों का, धर्म का यश बढ़े तथा तुम दुःख के पात्र नहीं होओ वैसे प्रयत्न करो। जैसे जो क्षत्रिय कुल में उत्पन्न हुए शूरवीर हैं वे संग्राम में शस्त्रों द्वारा बहुत नष्ट पहुँचाये जाने पर भी टेढ़ी भौंहों सहित ही मरण करते हैं; परन्तु शत्रुओं की ओर से मुख उलटा नहीं फेरते हैं। उसी प्रकार परम वीतरागी पुरुषों की शरण ग्रहण करनेवाले पुरुष भी अशुभ कर्मो के अति प्रहार से देह का त्याग कर देते है; परन्तु दीनता कायरता नहीं दिखाते हैं। किनते ही जिनलिंग के धारी उत्तम पुरुषों को दुष्ट बैरियों ने चारों तरफ से अग्नि लगा दी, उसकी घोर वेदना जो वचन के अगोचर है, उस अग्नि में सब तरफ से जलते हुए भी अपना ऋण चुकने के समान जानकर, पंच परम गुरुओं की शरण सहित, धीरता धारण करते हुए जल गये हैं; परन्तु कायरता नहीं दिखाई। आत्मज्ञान की ऐसी प्रभावना है। जिसने इस शरीर से भिन्न अविनाशी, अखण्ड, ज्ञान स्वभाव का अनुभव किया है, उस अनुभव करने का फल अकंपना भयरहितपना ही है। ___ जब मिथ्यादृष्टि अज्ञानी भी परलोक के सुख का चाहनेवाला होकर धैर्य धारण कर लेता है, वेदना में कायर नहीं होता है, तब संसार के समस्त दुःखों का नाश करने के इच्छुक जिनधर्म के धारक तुम क्यों कायर होकर आत्मा के हित को बिगाड़ रहे हो तथा उज्ज्वल यश को मलिन करके दुर्गति के पात्र क्यों बन रहे हो ? Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008300
Book TitleRatnakarandak Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorMannulal Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year2000
Total Pages527
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, & Religion
File Size6 MB
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