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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates [श्री रत्नकरण्ड श्रावकाचार ४४८] दोहा मृत्यु महोत्सव वचनिका, लिखी सदासुख काम । शुभ आराधन मरणकरि, पाऊँ निजसुख धाम ।।१।। उगणीसै ठारा शुकल, पंचमि मास असाढ़ । पूरन लिखि वांचो सदा, मन धरि सम्यग्गाढ़ ।।२।। इस प्रकार सल्लेखना के वर्णन में उपकारी जानकर इसमें मृत्यु महोत्सव लिखा है। यद्यपि इसकी वचनिका संवत् उन्नीस सौ अठारह (१९१८) में लिख दी थी, वही अब यहाँ सल्लेखना के कथन में शामिल कर दी,तथा विशेष और लिखे बिना विषय है ही इसलिये तैयार कथनी लिख दी है। अब यहाँ सल्लेखना के दो भेद हैं: एक काय सल्लेखना, दूसरी कषाय सल्लेखना। यहाँ सल्लेखना का अर्थ सम्यक् प्रकार से कृश करने का है। देह का कृश करना वह काय सल्लेखना है। इस काय को जितना पुष्ट करो, सुखी रखो, उतना ही इन्द्रियों के विषयों की तीव्र लालसा उत्पन्न कराती है, आत्मविशद्धता को नष्ट करती है. काम-लोभ आदि की वद्धि करती है, निद्रा-प्रमाद-आलस आदि को बढ़ाती है, परीषह सहने में असमर्थ होती जाती है, त्याग संयम के सन्मुख नहीं होती है, आत्मा को दुर्गति में गमन कराती है, वात-पित्तकफादि अनेक रोगों को उत्पन्न कराकर महादुर्ध्यान कराकर संसार परिभ्रमण करवाती है। इसलिये अनशनादि तपश्चरण करके इस शरीर को कृश करना चाहिये। रोगादि वेदना उत्पन्न नहीं हो, परिणाम अचेत नहीं हो, अतः प्रथम काय सल्लेखना का वर्णन करनेवाला श्लोक कहते हैं : काय सल्लेखना आहारंपरिहाय क्रमशः स्निग्धं विवर्द्धयेत्पानम् । स्निग्धं च हापयित्वा खरपानं पूरयेत्क्रमशः ।।१२७।। खरपानहापनामपि कृत्वा कृत्वोपवासमपि शक्तया। पञ्चनमस्कारमनास्तनुं त्यजेत् सर्वयत्नेन ।।१२८ ।। अर्थ :- काय सल्लेखना अनुक्रम से करना चाहिये। क्रमशः आहार को छोड़कर स्निग्ध दूध आदि को बढ़ाकर ग्रहण करे, फिर दूध आदि छोड़कर छाछ को बढ़ावे, फिर छाछ को छोड़कर गर्मजल बढ़ावे, फिर गर्म जल को भी छोड़कर शक्ति अनुसार एक दो उपवास करते हुए सर्व प्रयत्न से मन में पंच नमस्कार मंत्र का स्मरण करते हुए शरीर का त्याग करे। भावार्थ :- अपनी आयु का शेष समय देखकर उसी के अनुसार देह से इंद्रियों से ममत्व रहित होकर आहार के स्वाद से विरक्त होकर: क्रमशः काय सल्लेखना करता हुआ विचार करे: Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008300
Book TitleRatnakarandak Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorMannulal Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year2000
Total Pages527
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, & Religion
File Size6 MB
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