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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates षष्ठ- सम्यग्दर्शन अधिकार [४१९ हैं ? उस द्वितीय पीठ के ऊपर अपने अनेक रत्नों की कांति से अंधकार को दूर करता हुआ सर्व रत्नमय चार धनुष ऊँचा तृतीय पीठ है। इस प्रकार त्रिमेखलामय पीठ ऐसा दिखाई देता है मानो भगवान की उपासना के लिये समस्त रत्नमय सुमेरु पर्वत ही आ गया है। समोशरण का विस्तार इस प्रकार जानना धूलिशाल कोट से खाई तक गोल घेरा का व्यास (चौड़ाई) एक योजन है; खाई से पुष्पवाड़ी की वेदी तक वलय व्यास (चौड़ाई) एक योजन है; उसके आगे अशोकादि वनभूमि | वलय व्यास एक योजन है; उसके आगे ध्वजाभूमि का वलय व्यास एक योजन है; उसके आगे कल्पवृक्षों के वन का वलय व्यास एक योजन हैं; उसके आगे प्रासाद पंक्ति का वलय आधा योजन है। इस प्रकार एक दिशा का वलय व्यास साढ़े पाँच योजन हुआ, दोनों (आमने सामने की) दिशाओं का वलय व्यास कुल ग्यारह योजन हुआ। मध्य में तथा आकाश स्फटिक कोट के नीचे श्रीमण्डप का विस्तार एक योजन का है। इस प्रकार कुल बारह योजन का विस्तार समोशरण की भूमि का है। श्रीमण्डप में स्फटिकमय कोट से गंधकुटी की निचली पीठ तक सभा की भूमि एक तरफ की एक कोस, दोनों तरफ की दो कोस है। मध्य में तीनों कटनी की पीठ दोनों तरफ दो कोस चौड़ी है। उसमें ऊपरी तीसरी पीठ (मध्य) की चौड़ाई १००० धनुष है, दूसरी पीठ की चौड़ाई एक तरफ ७५० धनुष दोनों तरफ १५०० धनुष है, तीसरी निचली (प्रथम) पीठ की चौगिरद कटनी चौड़ाई ७५० धनुष दोनों तरफ की १५०० धनुष है। इस प्रकार तीनों पीठों की चौड़ाई ४००० धनुष अर्थात दो कोस है। इस प्रकार मध्य का विस्तार चार कोस या एक योजन जानना। प्रथम पीठ भूमि से आठ धनुष ऊँची हैं; उसके ऊपर चार धनुष ऊँची दूसरी पीठ है। उसके ऊपर चार धनष ऊँची तीसरी पीठ है। एक कोस चौड़ी चारों तरफ की चार महावीथी है, उनके दोनों बाजु की आठ दीवारें प्रथम पीठ की ऊँचाई के बराबर आठ-आठ धनुष ऊँची हैं, तथा दीवारों की मोटाई ऊँचाई का आठवाँ भाग याने एक धनुष की है। बारह सभाओं की शेष आठ दीवारों की ऊँचाई भी आठ धनुष व चौड़ाई एक धनुष की है। तीसरी अंतिम पीठ के ऊपर समोशरण के मध्य में अनेक रत्नों के समूहों से इंद्रधनुष बन रहे हैं। वहाँ इंद्र के हाथ से क्षेपे गये अनेक प्रकार के पुष्प शोभित हो रहे हैं। उस एक हजार धनुष चौड़ी गोल तीसरी पीठ के बीच में छह सौ धनुष लम्बी चौड़ी चौकोर अनेक रत्नमय गंधकुटी की रचना कुबेर ने की है। चौड़ाई से ऊँचाई अधिक है - मान उनमान प्रमाण सहित है, ऊँचे कोट से भूषित है, अनेक रत्नों की प्रभायुक्त कूट शिखर सहित आकाश में व्याप्त हैं, तथा ऊँचे शिखरों से बंधी जो विजयरुप ध्वजायें हैं वे ऐसी लगती हैं मानो देवों को बुला रही हैं। ___ बड़े-बड़े मोतियों के जाल चारों तरफ लटक रहे हैं; कहीं सोने के, कहीं रत्नों के जाल शोभित हैं; चारों तरफ अनेक रत्नमय आभरण तथा बहुत सुंगधित कल्पवृक्षों के फूलों की मालायें शोभित Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008300
Book TitleRatnakarandak Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorMannulal Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year2000
Total Pages527
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, & Religion
File Size6 MB
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