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[श्री रत्नकरण्ड श्रावकाचार
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मिलता है; अनेक तिरस्कार भोगते हैं। रहने को बहुत ही जीर्णघर जिसके ऊपर घासफूस पत्तों की छाया ही पूरी नहीं; बहुत सकड़ा होता है। उसमें भी चूहे, सांप, बिच्छू आदि के चारों तरफ बिल; बहुत दुर्गंध व चांडाल आदि कुकर्मियों के घरों के पास रहना होता है।
खाने को पाव भर धान नहीं मिलती है। कलहकारिणी, काली, कटुकवचन युक्त, महाभयंकर, विप, डरावनी, पापिनी स्त्री का समागम; अनेक रोगी, भूखे, विलाप करते कुरुप पुत्रपुत्रियों का समागम पाप के उदय से पाता है। ___व्यसनी दुष्ट महापापी पुत्र का साथ; बैरियों से भी महाबैरी जबर दुष्ट भाई का साथ; दुष्ट अन्यायमार्गी, बलवान, पापी, दुराचारी पड़ोसियों का साथ; लोभी दुष्ट, अवगुणग्राही, कृपण, क्रोधी, मूर्ख स्वामी की महाक्लेश कारी सेवा पाप के उदय से मिलती है। कृतघ्नी ,दुष्ट ,छिद्र हेरनेवाला, जबर सेवक का मिलना-ये सब संसार में पाप के उदय से देखे जाते हैं।
धर्मरहित, अन्यायमार्गी, क्रूर राजा के राज में रहना; दुष्ट मंत्री, प्रधान, कोतवाल का साथ मिलना; कलंक लगना, अपयश हो जाना, धन का नष्ट हो जाना - ये सब पंचमकाल के मनुष्यों के बहुत प्रकार से पाये जाते हैं। ___ इस दुःखमाकाल में जितने मनुष्य उत्पन्न होते है वे पूर्व जन्म में व्रत-संयम रहित मिथ्यादृष्टि होते हैं वे ही भरतक्षेत्र में पंचमकाल के मनुष्य होते हैं। कोई मिथ्याधर्मी कुदान, कुतप, मन्दकषाय के प्रभाव से यहाँ मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं; वे राज्य ऐश्वर्य धन भोग सम्पदा निरोगता पाकर, अल्प आयु में ही ये सब भोगकर, पाप उपार्जन करनेवाले अन्यायअभक्ष्य के मिथ्यामार्ग में प्रवर्तन करके संसार में परिभ्रमण करते हैं।
कोई विरले पुरुष यहाँ पर सम्यग्दर्शन सहित होकर व्रत-संयम भी धारण करते हैं। मंदकषायी आत्म निन्दा-गर्हायुक्त मनुष्य अपने मनुष्यजन्म को सफल करके स्वर्ग में महर्द्धिक देव होते हैं। यहाँ पर कोई पूर्व जन्म में मन्दकषायी उज्ज्वल दानादि करनेवाला पुण्य संयुक्त भी आ जाये, तो उसको भी इष्ट का वियोग व अनिष्ट का संयोग होता ही है।
संसार के दुःख का स्वभाव देखो : भरत चक्रवर्ती के ही छोटे भाई ने महान अनिष्ट होकर बल के मद से चक्रवर्ती का मान भंग (अपमान) किया। न्यायमार्ग से देखिये: तो भरत बड़ा भाई, पद में पिता के बराबर रहनेवाला, नमन करने योग्य था। फिर वह चक्रवर्ती
और कुल में भी बड़ा था। उसकी उच्चता लघुभ्राता होकर देख नहीं सके। भरत बड़ा सच्चा, ममत्व से शामिल होकर राज्य को भोगने के लिये बुलाया। परन्तु बड़े भाई से ईर्ष्या की, अपयश किया, तो अन्य की कथा क्या कहें ?
किसी के स्त्री नहीं है तो उसकी तृष्णा से स्त्री के बिना अपना जीवन व्यर्थ मानकर दुःखी हो रहा है। किसी की स्त्री है जो दुष्टनी है, व्यभिचारिणी है, कलहकारिणी, मर्म को विदारनेवाली व रोग से निरंतर सन्ताप करनेवाली है, जिससे बहुत दुःखी होता है। किसी की आज्ञाकारिणी पति
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