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Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates षष्ठ- सम्यग्दर्शन अधिकार
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वनकटी करानेवाले, वन में दावाग्नि लगानेवाले, जीवों को बाड़े में बांधकर जला देनेवाले, हिंसा के तीव्रकर्म की परिपाटी चलानेवालों का नरक में गमन होता है।
नरक में अम्ब अम्बरीषादि दुष्ट असुरकुमार देव तीसरी पृथ्वी तक जाकर नारकियों को लड़ाते हैं। किन्हीं नारकियों को तीसरी पृथ्वी तक पूर्व जन्म के संबंधी देव आकर धर्म का उपदेश भी देते हैं। कोई-कोई अपने पूर्व भव के पापों की निंदा भी करता हैं, बहुत पश्चाताप करता है कि-मुझको पूर्व में सत्पुरुषों ने बहुत शिक्षा दी- अरे! अनीति के मार्ग पर मत चलो, बहुत उपदेश भी दिया- परन्तु मैं पापी ने विषयों में कषायों के मद से अन्धा होकर उनकी शिक्षा ग्रहण नहीं की। अब मैं दैव (भाग्य) बल , पौरुषबल से रहित क्या करूँ ? जिन पापी, दुराचारी, पाप में प्रेरणा करनेवाले, व्यसनी, अनीति का पोषण करनेवालों ने हमें नरक प्राप्त कराया है, वे पापी क्या मालूम शरीर छोड़कर कहाँ जांयगे ? हमारे साथ तो कोई दिखाई नहीं देता है। हमारे धन भोगने में, विषय सेवन में सहायक, पाप के प्रेरक मित्र पुत्र बांधव स्त्री आदि सहायक थे, उन्हें अब कहाँ देखू ? इस प्रकार अवधिज्ञान से पूर्व जन्म में जो दुराचार किये उनका पश्चाताप करते हुए घोर मानसिक दुःख प्राप्त करते हैं।
किसी महाभाग्यवान के सम्यग्दर्शन भी उत्पन्न हो जाता है। परन्तु पर्याय संबंधी दुःख कषाय स्वयमेव उत्पन्न होते हैं, आप स्वंय किसी को नहीं मारना चाहता है, तो भी कषायों की प्रबलता कर्म उदय से रुकती नहीं है. स्वयमेव हस्तादि शस्त्ररुप परिणमते हैं।
नारकियों को क्षणमात्र भी विश्राम नहीं, निद्रा नहीं। भूमि के स्पर्श का दुःख ही केवलीगम्य है। अतितीव्र कर्म के उदय में कोई शरण नहीं है, शरण की इच्छा से वहां देखता है, किन्तु कोई दयावान नहीं, सभी क्रूर, निर्दयी, भयानक, उग्र देह के धारक, अंगार समान प्रज्वलित नेत्रों सहित, प्रचण्ड अशुभ ध्यान के करानेवाले, क्रोध को उत्पन्न करानेवाले घोर नारकी हैं।
उन नारकियों के महान विलाप तथा रुदन, मारण, त्रासन के घोर शब्द सुनाई देते हैं, अहो! जब मैं मनुष्य पर्याय में था तब स्वाधीन होकर आत्महित नहीं किया, अब देव व पुरुषार्थ दोनों के बल से रहित होकर क्या करूँ ? पूर्व में जो-जो निंद्य कर्म मैंने किये हैं अब मुझे याद आते ही मरम को छेद देते हैं। जो दुःख एक क्षण भर को भी नहीं सहा जाता है वह दुःख यहाँ सहते हुए सागरों तक का समय कैसे पूरा करूँगा? ।
जिनके लिये पाप कर्म किये वे सेवक, स्त्री, पुत्र, बांधवों को यहाँ कहाँ देखू ? वे तो धन के विषयों के भोगने में शामिल थे, अब इन दुःखों में कहाँ देखू ? ___ ऐसे दुःखों से रक्षा करनेवाला एक दयाधर्म ही है, वह धर्म मुझ पापी ने उपार्जन ही नहीं किया। परिग्रह रुप महापिशाच से अचेतन हुआ यह नहीं जाना कि यमराज रुप सिंह की चपेट से एक क्षण में मरकर नरक के नारकी के रुप में जन्म हो जायेगा, इत्यादि मन के संताप जनित घोर दुःख प्राप्त करता है।
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