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Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates षष्ठ- सम्यग्दर्शन अधिकार
[२९९ एक मनुष्यपने में ही वचन बोलने की शक्ति प्रकट होती है। ऐसी दुर्लभ वचन बोलने की सामर्थ्य को पाकर उसे असत्य वचन बोलकर बिगाड़ देना, यह बड़ा अनर्थ है। मनुष्य जन्म की महिमा तो एक वचन शक्ति से ही है। नेत्र, कर्ण, जिह्वा , नासिका तो ढोर तिर्यंच के भी होते हैं। खाना, पीना, काम, भोगादि पुण्यपाप के अनुकूल जानवरों को भी प्राप्त हो जाते हैं। आभरण, वस्त्रादि कूकर, वानर, गधा, घोड़ा, ऊँट, बैल इत्यादि को भी मिल जाते हैं; परन्तु वचन कहने की शक्ति, सुनने की शक्ति, उत्तर देने की शक्ति, पढ़ने-पढ़ाने का कारण वचन शक्ति तो मनुष्य जन्म में ही प्राप्त होती है। जिसने मनुष्य जन्म पाकर वचन बिगाड़ लिया, उसने समस्त जन्म बिगाड़ दिया। मनुष्य जन्म में भी लेना-देना, कहनासुनना, धीरज-प्रतीति, धर्म-कर्म, प्रीति-बैर इत्यादि जितने भी प्रवृत्तिरूप व निवृत्तिरूप कार्य हैं वे सभी वचन के अधीन हैं। जिसने वचन को ही दूषित कर दिया उसने समस्त मनुष्य जन्म का व्यवहार बिगाड कर दषित कर दिया। अतः प्राण जाने पर भी अपने वचन को दूषित नहीं करो।
परमागम में कहे हुए चार प्रकार के असत्य वचन का त्याग करो।
करणानुयोग का कथन (१) : विद्यमान अर्थ का निषेध करना वह प्रथम असत्य वचन है। जैसे - कर्मभूमि के मनुष्य-तियँच की अकाल मृत्यु नहीं होती है - ऐसा वचन असत्य है। देव, नारकी तथा भोगभूमि के मनुष्य व तिचंच का तो आयुकर्म की स्थिति पूर्ण हो जाने पर ही मरण होता है, बीच में आयु छेदी नहीं जा सकती है, जितनी स्थिति बांधी थी उतनी भोग करके ही मरण करता है। ____बाह्य निमित्त की मुख्यता से कथन : कर्मभूमि के मनुष्य-तिर्यंचों की आयु का नाश विष खाने से, पीटने से, मारने से, छेदने से, बन्धनादि की वेदना से, रोग की तीव्र वेदना से, शरीर से रक्त निकल जाने से, तथा दुष्ट मनुष्य-दुष्ट तिर्यंच भयंकर देवों द्वारा उत्पन्न किये गये भय से, वज्रपातादि के स्वचक्र-परचक्रादि के भय से, शस्त्र के घात से, पर्वत आदि से गिरने से, अग्नि-पवन-जल-कलह-विसंवादादि से उत्पन्न क्लेश से, श्वास-उच्छवास के रुक जाने से, आहार-पानादि का निरोध होने से आयु का नाश हो जाता है। आयु की लम्बी (दीर्घ) दिखने वाली स्थिति भी विष भक्षण, रक्तक्षय, भय, शस्त्रघात, संक्लेश, श्वासोच्छवास निरोध, अन्न पान का अभाव आदि से तत्काल ही नाश को प्राप्त हो जाती है।
प्रश्न : कितने ही लोग कहते हैं कि आयु पूर्ण हुए बिना मरण नहीं होता है ?
उत्तर : यदि बाह्य निमित्त से आयु नहीं छिदती है तो विष भक्षण से कौन पीछे हटता ? विष खानेवाले को उखाली क्यों देते ? शस्त्रघात करनेवाले से डरकर क्यों भागते ? सर्प, सिंह, व्याघ्र , हाथी, दुष्ट मनुष्य, दुष्ट तिर्यंचों को दूर से ही क्यों छोडते ? नदी, समुद्र, कुआ, बावड़ी में, अग्नि की ज्वाला में गिरने से कौन भय खाता ? रोग का इलाज क्यों करते ? अधिक कहने से क्या ? यदि आयुघात होने का बहिरंग कारण मिल जाता है तो जिसकी आयु का घात होना ही है, उसकी आयु का घात हो ही जाता है, यह निश्चय है।
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