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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates षष्ठ - सम्यग्दर्शन अधिकार [२९५ बड़ा भाग्य है जो आप सरीखे महापुरुषों के हाथ आदि से हमारा मरण हो रहा है। यदि हम सरीखे अपराधी को आप दण्ड नहीं दोगे तो न्याय का मार्ग बदनाम हो जायेगा। हम अपने अपराध का फल-नरक-तियँचगति में आगे भोगते, किन्तु आपने हमें यहीं पर कर्म के ऋण से रहित कर दिया। मैं आपसे मन-वचन-काय से बैर विरोध छोड़कर क्षमा माँगता हूँ। आप भी मुझे अपराध का दण्ड देकर क्षमा ग्रहण करो – मैं क्षमा करता हूँ । मैं रोगादि कष्टों को भोगकर अत्यंत दुःख से मरण करता, किन्तु अब धर्म की शरण लेकर, कर्म के ऋण से रहित होकर आप जैसे सज्जन की कृपा सहित मरण करूँगा। इस प्रकार मारनेवाले से भी बैर छोडकर समभाव धारण करना वह उत्तम क्षमा है। इस प्रकार उत्तम क्षमा उत्तम मार्दव धर्म | __अब उत्तम मार्दव गुण का स्वरूप कहते हैं। मार्दव का स्वरूप इस प्रकार है : मान कषाय से आत्मा में जो कठोरता होती है, उस कठोरता का अभाव होने पर जो कोमलता होती है वह मार्दव नाम का आत्मा का गुण है। आत्मा और मान कषाय के भेद को अनुभव करके मान को छोड़ना उसका नाम मार्दव गुण है। मान कषाय तो संसार का बढ़ानेवाला है, किन्तु मार्दव संसार परिभ्रमण का नाश करनेवाला है। यह मार्दवगुण दयाधर्म का कारण है। ___ अभिमानी के दयाधर्म का मूल से ही अभाव है, ऐसा जानना। कठोर परिणामी तो निर्दयी होता है। मार्दवगुण सभी का हित करनेवाला है। जिनके मार्दवगुण है उन्हीं का व्रत पालना, संयम धारण करना, ज्ञान का अभ्यास करना सफल है, अभिमानी का सब निष्फल है। मार्दव नाम का गुण मान कषाय का नाश करनेवाला है तथा पाँच इंद्रियों व मन को दण्ड देनेवाला है। मार्दव धर्म के प्रसाद से चित्तरूप भूमि में करुणारूप नवीन बेल फैलती है। मार्दव द्वारा ही ही जिनेन्द्र भगवान में तथा शास्त्रों में भक्ति का प्रकाश होता है। मद सहित के जिनेन्द्र के गुणों में अनुराग नहीं होता है। मार्दव गुण से कुमतिज्ञान के प्रसार का नाश होता है, कुमति नहीं फैलती है। अभिमानी के अनेक प्रकार की कुबुद्धियाँ उत्पन्न होती हैं। मार्दवगुण से बहुत विनय प्रवर्तती है। मार्दव से बहुत समय का पुराना बैरी भी बैर छोड़ देता है। मान घटने पर परिणामों में उज्ज्वलता होती है। कोमल परिणामों द्वारा दोनों की सिद्धि होती है – कोमल परिणामी का इस लोक में सुयश होता है, परलोक में देवगति की प्राप्ति होती है। कोमल परिणामों से ही अंतरंगबहिरंग तप शोभित होते हैं। अभिमानी का तप भी निंदा योग्य है। कोमल परिणामी से तीनों लोकों के जीवों का मन प्रसन्न रहता है। मार्दव द्वारा ही जिनेन्द्र का शासन जाना जाता है। मार्दव द्वारा ही अपने तथा पर के स्वरूप का अनुभव करते हैं। कठोर परिणामी के आपा-पर विवेक नहीं होता है। मार्दव द्वारा ही समस्त दोषों का नाश होता है। मार्दव परिणाम संसार समुद्र से पार कर देता है। अत: मार्दव परिणाम को सम्यग्दर्शन का अंग जानकर निर्मल मार्दव धर्म का स्तवन करो। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008300
Book TitleRatnakarandak Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorMannulal Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year2000
Total Pages527
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, & Religion
File Size6 MB
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