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Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates षष्ठ - सम्यग्दर्शन अधिकार
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प्रवचन भक्ति भावना अब प्रवचन भक्ति नाम को तेरहवीं भावना का वर्णन करते हैं। प्रवचन का अर्थ जिनेन्द्र सर्वज्ञ वीतराग द्वारा प्रणीत आगम है। जिसमें छ: द्रव्यों, पाँच अस्तिकायों, सात तत्त्वों, नौ पदार्थों का वर्णन है, तथा कर्मों की प्रकृतियों के नाश का वर्णन है, वह आगम है। __ जिसके प्रदेश बहुत होते हैं, उसे अस्तिकाय कहते हैं। जो निरन्तर गुण-पर्यायों को प्राप्त हो, उसका नाम द्रव्य है। वस्तुपने के द्वारा जो निश्चय करते हैं उसका नाम पदार्थ हैं। जिसमें स्वभाव, रूपपना है, उसका नाम तत्त्व है। इनका विशेष कथन आगे प्रकरण पाकर करेंगे। जैसे अंधकारयुक्त महल में हाथ में दीपक लेकर देखने पर सभी पदार्थ दिखाई देते हैं, उसी प्रकार तीनलोकरूप मंदिर में प्रवचनरूप दीपक द्वारा सूक्ष्म, स्थूल, मूर्तिक, अमूर्तिक सभी पदार्थ दिखाई देते हैं; प्रवचनरूप नेत्रों द्वारा ही मुनीश्वर चेतन आदि गुणों के धारक समस्त द्रव्यों का अवलोकन करते हैं। जिनेन्द्र के परमागम को योग्य काल में बहुत विनय से पढ़ना, वह प्रवचन भक्ति है।
कैसे है प्रवचन ? जिसमें छ:द्रव्य, सात तत्त्व, नौ पदार्थों के भेदरूप समस्त गुण-पर्यायों का वर्णन हैं, अनन्त भूतकाल हो गया, अनन्त भविष्यकाल होगा तथा वर्तमानकाल, उनके स्वरूप का वर्णन है।
जिसमें अधोलोक की सात पृथ्वी व नारकियों के रहने के, उत्पत्ति के स्थानों का, आयु, काय, वेदना, गति आदि का वर्णन हैं। तथा भवनवासी देवों के सात करोड़ बहत्तर लाख भवनों का , उनकी आयु, काय, वैभव, विक्रिया , भोग का अधोलोक में वर्णन किया है।
जिसमें मध्यलोक संबंधी असंख्यात द्वीप समुद्रों का, उनमें मेरु, पर्वत, नदी, सरोवर आदि का तथा कर्मभूमि के विदेह क्षेत्रों का, भोगभूमि का, छियानवै अन्तर्वीप संबंधी मनुष्यों का, कर्मभूमि के भोगभूमि के मनुष्यों का कर्तव्य, आयु, काय, सुख-दुःख का; तथा तिर्यंचों का, व्यंतरों के निवास, वैभव, परिवार, आयु, काय, सामर्थ्य, विक्रिया का वर्णन है। मध्यलोक में ज्योतिषी देव हैं उनके विमान, वैभव, परिवार, आयु कायादि का सूर्य, चंद्रमा, ग्रह, नक्षत्रों का चारक्षेत्र संबंधी संयोग आदि का वर्णन है।
उर्ध्वलोक के त्रेसठ पटलों का, स्वर्ग के अहमिन्द्रों के पटलों का, इन्द्रादि देवों का वैभव, परिवार, आयु, काय, शक्ति, गति, सुखादि का वर्णन है। इस प्रकार सर्वज्ञ द्वारा प्रत्यक्ष देखे तीन लोकवर्ती समस्त द्रव्यों के उत्पाद, व्यय, धौव्यपनादि समस्त प्रवचन में वर्णन किया है। कर्मों की प्रकृतियों का बंध होने का, उदय का, सत्त्व का, संक्रमणादि का, समस्त वर्णन आगम में है।
संसार से उद्धार करनेवाले रत्नत्रय के स्वरूप व रत्नत्रय प्राप्त होने के उपाय का वर्णन परमागम में ही है। गृहस्थपने में श्रावक धर्म की जघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट चर्या का, तथा श्रावकों के व्रत-संयमादि व्यवहार-परमार्थरूप प्रवृत्ति का वर्णन प्रवचन से ही जानते हैं। गृह के त्यागी मुनिराजों के महाव्रतादि अट्ठाईस मूलगुण, चौरासी लाख उत्तर गुण, स्वाध्याय, ध्यान, आहारविहार, सामायिक आदि
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