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कल्याणानुवाद पूर्व के छब्बीस करोड़ २६,००,००० पदों में तीर्थंकर, चक्रवर्ती, बलभद्र, नारायण ( वासुदेव), प्रतिनारायण के गर्भ कल्याणक आदि महोउत्सवों का तथा इन पदों का कारण षोडश भावना, तपश्चरण आदि क्रिया का, तथा चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र आदि की गति, ग्रहण, शकुन, फल आदि का वर्णन है । ११ ।
प्राणवाद पूर्व के तेरह करोड़ १३,००,००,००० पदों में शरीर की चिकित्सा का अष्टांग आयुर्वेद जो वैद्य विद्या उसका, तथा भूत-प्रेत आदि व्याधि दूर करने के कारणभूत मंत्रादि का, विष आदि दूर करनेवाली जांगलिका, तथा इला, पिंगला, सुषुम्ना आदि श्वासोच्छवास का तथा गति के अनुसार दश प्राणों को उपकारक - अनुपकारक द्रव्यों का वर्णन है।१२।
क्रियाविशाल पूर्व के नौ करोड़ ९,००,००,००० पदों में संगीत शास्त्र, छंद, अलंकार शास्त्र, बहत्तर कलायें, स्त्री के चौंसठ गुण, शिल्प विज्ञान, गर्भाधान आदि चौरासी क्रियायें सम्यग्दर्शन आदि की एक सौ आठ क्रियायें, पच्चीस देववंदनादि क्रियायें, तथा नित्यनैमित्तिक क्रियाओं का वर्णन है । १३ ।
त्रिलोकबिन्दुसार पूर्व के बारह करोड़ पचास लाख १२,५०,००,००० पदों में तीन लोकों का स्वरूप, छब्बीस परिकर्म, आठ व्यवहार, चार बीज आदि गणित, मोक्ष का स्वरूप, मोक्ष गमन की कारणभूत क्रिया तथा मोक्ष सुख का वर्णन है । १४ । इस प्रकार पंचानवै करोड़ पचास लाख पाँच ९५,५०,००,००५ पदों में चौदह पूर्व का वर्णन है ।
जलगता, स्थलगता,
दृष्टिवाद अंग का पाँचवा भेद चूलिका के पाँच भेद हैं मायागता, आकाशगता, रूपगता । प्रत्येक चूलिका के दो करोड़ नौ लाख नबासी हजार दो सौ २,०९,८९,२०० पद हैं। पाँचों चूलिकाओं के कुल दश करोड़ उनंचास लाख छियालीस हजार १०,४९,४६,००० पद हैं।
जलगता चूलिका में जल को रोकना, जल में गमन करना, अग्नि को रोकना, अग्नि खाना, अग्नि पर बैठना - चलना, अग्नि में प्रवेश करना इत्यादि क्रिया के कारणभूत मंत्र, तंत्र तपश्चरणादि का वर्णन है ।१ ।
स्थलगता चूलिका में मेरु आदि पर्वतों में, भूमि में प्रवेश तथा शीघ्र गमन इत्यादि क्रिया के कारणभूत मंत्र, तंत्र तपश्चरणादि का वर्णन है।२।
मायागता चूलिका में मायारूप इंद्रजालादि विक्रिया के कारणभूत मंत्र, तंत्र तपश्चरणादि का वर्णन है । ३ ।
आकाशगता चूलिका आकाश में गमन के कारणभूत मंत्र, तंत्र, तपश्चरण/आदि का वर्णन है ।४।
रूपगता चूलिका में सिंह, हाथी, घोड़ा, बैल, हिरण, व्याघ्र, खरगोश, मनुष्य, वृक्ष आदि के अनेक रूप बदलने के कारणभूत मंत्र, तंत्र तपश्चरणादि का, तथा चित्र, मिट्टी, पत्थर, लकड़ी, लेप
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