SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 264
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates षष्ठ- सम्यग्दर्शन अधिकार [२२१ असत्यवादी सभी को अप्रिय होता है। इसके मायाचार होता ही है। असत्य और कपट में अबिनाभावीपना है। कुवचन बोलना, चुगली करना, विकथा, आत्म प्रशंसा, पराई निंदाये असत्य का परिवार है। असत्यवादी इसी लोक में जिह्वा छेद, सर्वस्व हरण, जिह्वा के रोग से दुःखी होना इत्यादि घोर दुःखी प्राप्त करता है; उसकी बदनामी होती है; परलोक में नरक इत्यादि में परिभ्रमण, तिर्यंचगति में वचन रहितपना तथा गूंगा, बहरा, अंधा, दरिद्री, रोगीपना मिलता है। मूर्खपना, वचनकला रहितपना होता है; जगत में दीनता का विलाप करता फिरता है तो भी उसकी कोई सुनता ही नहीं है। इसलिये असत्यवचन का त्याग करना श्रेष्ठ है। सत्य के प्रभाव से देवलोक में गमन, स्वर्ग का महर्द्धिक देवपना मिलता है। उसके वचनों का समस्त जगत आदर करता है, समस्त उत्तम शास्त्रों का पारगामी होता है। कविपना, वाग्मीपना, अनेक जीवों का उपकार करनेवाला होता है, उसकी आज्ञा लाखों मनुष्य अंगीकार करते हैं - ऐसा सत्य वचन का फल है। जिसने पूर्वजन्म में वचन की उज्ज्वलता धारण की है उसके वचन सुनने की लाखों मनुष्य अभिलाषा करते हैं, चाहते हैं कि यह हमसे बोले तो हम कृतार्थ हो जावे। यह सब सत्य वचन का प्रभाव है। चोरी त्याग की प्रेरणा : अब चोरी के दोषों की भावना कहते हैं। चोर मनुष्य सभी को भय उत्पन्न करनेवाला होता है। माता भी चोरी करनेवाले पुत्र का बड़ा भय करती है। हितु, बांधव आदि कोई भी चोर का साथ नहीं चाहते हैं। चोर के संसर्ग से कलंक लग जाता है, कोई भी राजा की तरफ से आपत्ति आ सकती है, हमारा कुछ ले जायगा ऐसा भय लगा ही रहता है, छूटता नहीं है। चोर सभी से नीचा हो जाता है। चोर को मारने में किसी को दया नहीं रहती है। असत्य , कपट , छल आदि चोरों के अवश्य होते ही हैं। चोर पापियों में महापापी है। चोर का कोई सहायी नहीं होता है। माता, पिता, स्त्री, पुत्र आदि सब कुटुम्बी चोर को अपने साथ नहीं रखते हैं। उसकी धीरज-प्रतीति सब चली जाती है, कोई उसे रहने को स्थान नहीं देता है। चोर जानकर सभी उसे मारने लग जाते हैं। राजा द्वारा बहुत मारन, ताड़न, हात-नाक छेदन, मृत्यु आदि दण्ड दिये जाते हैं। बंदीखाने में बहुत समय तक रहकर, बदनाम होकर, मरकर, घोर नरक का कष्ट भोगता हआ अनंतकाल तियचों में भख, प्यास. ताडन, मारन, लादन, घसीटन आदि के द:ख असंख्यात भवों तक पाता है। यदि मनुष्य होता है तो महानीच, दरिद्री, रोगी, वियोगी, घोर क्षुधा, तृषा मारन, बंधन, चोरी के कलंक आदि सहित निरादर का दुःख भोगता हुआ कदम-कदम पर याचना करनेवाला , घोर दुःखों को भोगने का संतान क्रम चला जाता है। इसलिये चोरी का दूर से ही परित्याग करो। ___ अपने पुण्य-पाप के अनुकूल जो विषय सामग्री मिली है उसमें संतोष धारण करके, अन्य के धन की स्वप्न में भी वांछा नहीं करो। पराया धन पुण्य के बिना नहीं आता है, पूर्व जन्म में कुपात्र दान दिया, कुतप किया उसके फल में दूसरे का धन हाथ लग भी जाय तो कितने दिन भोगेगा? Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com
SR No.008300
Book TitleRatnakarandak Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorMannulal Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year2000
Total Pages527
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, & Religion
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy