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Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates षष्ठ - सम्यग्दर्शन अधिकार ]
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षष्ठ - भावना अधिकार
अब श्री परमगुरुओं की कृपा परमागम की आज्ञा प्रमाण भावना नाम का महाधिकार लिखते हैं। समस्त धर्म का मूल भावना है । भावना से ही परिणामों की उज्ज्वलता होती है, भावना से ही मिथ्यादर्शन का अभाव होता है, भावना से व्रतों में परिणाम दृढ़ होते हैं, भावना से वीतरागता की वृद्धि होती है। भावना से अशुभ ध्यान का अभाव होकर शुभ ध्यान की वृद्धि होती हे। भावना से आत्मा का अनुभव होता है, इत्यादि हजारों गुणों को उत्पन्न करनेवाली भावना ही है, ऐसा जान कर भावना को एक क्षण भी नहीं छोड़ो।
अब प्रथम ही पाँच व्रतों की पच्चीस भावना जानना चाहिये ।
अहिंसाणुव्रत की पाँच भावना : अहिंसाणुव्रत धारण करनेवाले गृहस्थ के पाँच भावनाओं का विस्मरण नहीं होता 1
मन में अन्याय के विषयों के भोगने की इच्छा का अभाव करके, खोटे संकल्पों को छोड़कर अपनी उच्चता नहीं चाहना; अन्य जीवों के विघ्न, इष्ट वियोग, मान भंग, तिरस्कार, धन की हानि, रोगादि नहीं चाहना, वह मनोगुप्ति भावना है । १ ।
हास्य के वचन, विवाद के वचन, अभिमान के वचन नहीं कहना, हिंसा के, कलह के, अपयश के कारणरूप वचन नहीं करना, वह वचनगुप्ति भावना है ।२।
सजीवों की विराधना टालकर हरी घास, कीचड़ आदि को छोड़कर, देख - शोधकर गमन करना, चढ़ना, उतरना, लाँघना, बड़े यत्न पूर्वक अपनी सामर्थ्य के अनुसार ऐसा करना, जिससे अपने हाथ-पैर आदि अंग- उपांगों में कष्ट नहीं पैदा हो जाये, जैसे अन्य जीवों को बाधा नहीं हो, उस प्रकार धीरज से हलन चलन करना, वह ईर्यासमिति भावना है।३।
सभी वस्तुएँ अन्न, पानी, वस्त्र, आसन, शैया, लकड़ी, पत्थर, मिट्टी, तथा पीतल, कांसा, लोहा, चाँदी, सोना इत्यादि के वर्तन, तथा घी आदि रस वगैरह गृहस्थ के जितना परिग्रह है; उसे यत्नपूर्वक उठाना, रखना; जिससे अन्य जीवों का घात न हो, अपने शरीर में गिर जाने आदि से कष्ट न हो, किसी का उजाड़ - बिगाड़ होने से अपने को व दूसरे को कष्ट नहीं हो, जिस प्रकार हिंसा होती हो उस प्रकार धरना, उठाना, घसीटना आदि नहीं करना, वह आदान निक्षेपण समिति भावना है ।४।
गृहस्थ जो भी भोजन पान करे वह अंतरंग तो द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की योग्यताअयोग्यता का विचार करके, योग्य देख करके करे । बाह्य दिन में, प्रकाश में, आँखों से देखकर, बारंबार शोधकर, धीरज से, ग्रासादि को मुख में लेकर खाये। गृद्धता से बिना— विचारे बिना-सोधे भोजन नहीं करना, वह आलोकितपान भोजन भावना है ।५ ।
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