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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates पंचम - सम्यग्दर्शन अधिकार] [१६५ स्वामी कार्तिकेय ने भी कहा है : अष्टमी-चतुर्दशी के दिन स्नान, विलेपन, आभूषण, स्त्री संसर्ग, पुष्प, इत्र, फुलेल, धूप आदि का त्यागकर जो ज्ञानी वीतरागता रूप आभरण से भूषित होकर दोनों पर्यों में सदाकाल उपवास करता है या एक बार भोजन करता है या नीरस आहार करता है उसके प्रोषधोपवास होता है। ___ अमितगति श्रावकाचार में कहा है : पर्व के दिन में उपवास, अनुपवास, एक भुक्ति-ऐसा तीन प्रकार कहा है। उनमें चार प्रकार के आहार के त्याग को उपवास कहा है, एक बार जल मात्र ग्रहण करना उसे अनुपवास कहा है, तथा एक बार अन्न-जल ग्रहण करना उसे एक भुक्ति ऐसी संज्ञा है। यहाँ ऐसा तात्पर्य जानना कि अपनी शक्ति को नहीं छिपा करके धर्म में लीन होकर यथाशक्ति उपवास करना। आगे चौथी प्रोषधप्रतिमा कहेंगे उसमें सोलह प्रहर का नियम जानना, तथा दूसरी व्रतप्रतिमा में यथाशक्ति, व्रत, तप, संयम धारण करके पर्व के दिनों में धर्मध्यान सहित रहना। अब उपवास में नहीं करने योग्य कार्य कहनेवाले श्लोक कहते हैं : पञ्चानां पापनामलंक्रियारम्भगन्धपुष्पाणाम् । स्नानाञ्जननस्यानामुपवासे परिहृतिं कुर्यात् ।।१०७।। अर्थ :- उपवास के दिन हिंसादि पाँचों पापों का त्याग करना चाहिये, अलंक्रिया अर्थात् आभरण आदि से सजने का त्याग करना, तथा गृहकार्य का आरम्भ, जीविका का आरंभ छोड़ देना चाहिये। सुगंध, केशर, कपूर आदि, इत्र, फुलेल आदि के ग्रहण करने का त्याग करना चाहिये। स्नान करने, आंख में अंजन लगाने का, नास सूंघने का त्याग करना चाहिये। नृत्य, गीत, वादित्र आदि देखना, सुनना, बजाना का त्याग करना चाहिये। पाँच इंद्रियों के भोगों का त्याग करना चाहिये। उपवास का प्रयोजन : उपवास इंद्रियों का मद मारने को, इंद्रियों का विषयों में गमन रोकने को, कामभाव को जीतने को, प्रमाद आलस्य आदि रोकने को, निद्रा नष्ट करने को, आरंभ आदि से विरक्त होने को, परीषह सहने की सामर्थ्य बढ़ाने को, धर्म के मार्ग से नहीं चिगने को – दृढ़ता बढ़ाने को, जिव्हा इंद्रिय व उपस्थ इंद्रिय को दण्ड देने को किया जाता है। केवल अपनी प्रशंसा, लाभ, परलोक में राज्यसंपदा आदि प्राप्त होने के लिये उपवास नहीं किया जाता है। अपना विषयानुराग घटाने के लिये, शक्ति बढ़ाने के लिये उपवास किया जाता है। इंद्रियाँ तो निरन्तर ही खान-पान आदि के अनेक स्वाद लेने में लगी रहती हैं, उपवास करने से रस आदि के भोजन में लालसा नष्ट हो जाती है, निद्रा पर विजय होती है, काम को मार लिया जाता है। इस प्रकार उपवास का बड़ा प्रभाव जानकर उपवास करना चाहिये। अब उपवास का दिन कैसे व्यतीत करना, यह कहनेवाला श्लोक कहते हैं : धर्मामृतं सतृष्णः श्रवणाभ्यां पिबतु पाययेद्वान्यान् । ज्ञानध्यानपरो वा भवतूपवसन्नतन्द्रालुः ।।१०८।। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008300
Book TitleRatnakarandak Shravakachar
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
AuthorMannulal Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year2000
Total Pages527
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, & Religion
File Size6 MB
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