________________
Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates १४४]
[श्री रत्नकरण्ड श्रावकाचार आप प्रत्यक्ष देखकर जरदा खाने का अवश्य ही त्याग करो। जरदा खानेवाला यदि एक दिन भी जरदा नहीं खावे तो परिणामों में उपाधि, पेट में पीड़ा तथा अनेक रोग उत्पन्न हो जाते हैं। इसलिये जरदा खाना महारोग को, महाव्याधि को, सूगलापना को अंगीकार करना है।
भांग त्याग :- भांग पीने से अपना बड़प्पन, शोभा नष्ट हो जाती है, भंगेड़ी की इज्जत घट जाती है, जिह्या इंद्रिय की लंपटता बढ़ जाती है. विकलता सताती है। वह तो प्रमादी होकर ऐश करना, बहुत निद्रा लेना , बहुत घी-शक्कर का भोजन करना चाहता है। पाँचों इंद्रियों के विषयों की लम्पटता को प्राप्त हो जाता है, ज्ञान कमजोर हो जाता है, बहमी हो जाता है। भांग पीनेवाले को मीठे भोजन में इतनी लम्पटता हो जाती है कि मीठा मिलने पर कृतकृत्य-सा हो जाता है। उसे आत्मज्ञान, धर्म का ज्ञान कभी नहीं होता है. बाह्य आचरण से भ्रष्ट होता ही है।
भांग में हजारों त्रसजीव चलते दौड़ते दिखाई देते हैं, उत्पन्न होते रहते हैं। वर्षा ऋतु में भांग में अपरिमाण त्रसजीव उत्पन्न हो जाते हैं, भंगेड़ी भांग को शोधता नहीं है, घोंटकर पी जाता है।
इस प्रकार अफीम खाना, जरदा खाना, हुक्का पीना, भांग पीना, छोतरा पीना, तमाखू सूंघना ये शरीर के तो महारोग ही हैं। इनका नाश करनेवाले के चेहरे की आकृति बिगड़ जाती है, धर्म तथा आचरण बिगड़ ही जाता है, ऐसा नियम है। ये नशा सम्यग्ज्ञान, सम्यक् चारित्र के भी महाघातक ही हैं। ये अमल अनर्थदण्डों में भी है, व्यसनों में भी हैं, तथा अभक्ष्यों मे भी हैं। इसलिये यदि अपना मनुष्य जन्म, जिनधर्म, उत्तमकुल आदि जो पाये हैं उन्हें सफल करना चाहते हो तो इन नशा-अमल करने का त्याग ही करो।
रात्रि भोजन त्याग :- रात्रि के समय भोजन करना त्यागने योग्य ही है। जो रात्रि में भोजन करता है उसके यत्नाचार तो रहता ही नहीं है, जीवों की हिंसा होती ही है। रात्रि में कीड़ी, मच्छर, मक्खी, मकड़ी, कसारी आदि अनेक जीव भोजन में आकर गिर पड़ते हैं। यदि दीपक, बिजली आदि जलाकर भोजन करते हैं तो उजाले के संयोग से दूर-दूर के जीव दीपक के पास तेजी से आकर भोजन में गिर पड़ते हैं। जैनधर्मी होकर यदि रात्रि में भोजन करता है तो आगे मार्ग से भ्रष्ट हो जायेगा। रात्रि में चूल्हा, चक्की , पानी, बर्तन का आरंभ करना, रखना, उठाना, मांजना, धोना इन घोर पाप कर्मों से तो महान हिंसा दुःख प्रकट हो जाता है, तब घोर आरम्भी के जिनधर्म को लेश भी नहीं रहता है।
___ कोई कहता है - आरम्भ तो रात्रि में नहीं करना , किन्तु बना बनाया ही भोजन, लड्डू, पेड़ा, पुड़ी, पुआ , बरफी, दूध आदि सीधा खा लेने में तो रात्रि का कोई आरम्भ नहीं हुआ ?
उसे इस प्रकार समझाते हैं - जो दिन में छोड़कर रात्रि में भोजन करता है उसको तीव्र राग-रूप महान हिंसा होती है। जैसे अन्न के ग्रास का अनुराग तथा मांस के ग्रास का अनुराग समान नहीं होता है, उसी प्रकार रात्रि भोजन का अनुराग तथा दिन के भोजन का अनुराग समान नहीं है। दिन में ही भोजन बहुत काफी है। जो रात्रि तथा दिन - दोनों में भोजन करता है उसके ढोर के समान धर्म रहित प्रवृत्ति रही। रात्रि भोजन करनेवाले के व्रत तप नहीं होते हैं।
Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com